कविता

भेड़ की खाल में हर तरफ हैं भेड़िये

आजकल जिधर भी नज़र दौड़ाओ
कंस और रावण ही नज़र आते हैं
लोग भी रावण को जलाते हैं हर बार
न जाने क्यों कंस को भूल जाते हैं

कंस के रावण से कहीं ज़्यादा थे अत्याचार
अपनी बहन की संतानों को मारा था बार बार
रावण बहुत विद्वान था लेकिन मति गई थी मारी
प्रभु श्रीराम के हाथों होना जो था उद्धार

कैसे पहचाने किसी को चेहरा देखकर
मुखौटे चेहरे पर लगा रखे हैं हज़ार
बाहर के लोगों से तो बचाना है बहुत ही कठिन
कैसे बचेगी जब घर के लोग ही करेंगे इज़्ज़त तार तार

उम्र का भी नहीं लिहाज़ न छोटा देखते न बड़ा
क्या हो गया इंसान को करता कुछ है कुछ और है कहता
जब भाई ने बहिन की इज़्ज़त से किया खिलवाड़
सोचिये कहां जा रहा ज़माना जो डर के था रहता

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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