कविता

कविता – पायलें

बडी बहन की पायल पहनी तो पाया,
क्षण भर खुशी देने वाली पायलें,
कभी- कभी बेड़ी में बदल जाती है!
जब जिम्मेदारियों के बोझ से
इच्छाएं दबने लगे !
भाव गलकर दिल से
आँखों में बहने लगे!
कभी माँ की कुछ न सुनने वाली,
वहाँ बिन बोले सब सुनने लगे !
अभी कहां मुझे भान है,
तो कैसे मेरे मन में ये बात जगे?
इन्हें पहन के खुश होते देख,
ठिठोली में सही भविष्य के
सुझाव दिए जाने लगे!
एक दिन सही, पर आज नही!
अपनी आज़ादी पर,
न्यौछावर है ऐसी लाखों पायलें!!

— खुशी तिवारी

खुशी तिवारी

प्रतापगढ़

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