कविता

घड़ी

घड़ी ने कहा कि करीब समय का जाने के बारे में
वह और क्षण का आरम्भ नहीं है
सेकेंड़ का सुई भी आवाज़ कर रहा है
तभी उसको स्वीकार किया कि
कहता है जैसा तेरा समय अब ख़तम है
मगर सोचा कि कहने को सुई को थोड़ा रूको
फिर देखने को
और एक गलत तो सही करते हुए
और थोड़ा खुशी से चल जाने को

— अमन्दा

एस. अमन्दा सरत्चन्द्र

श्री लंका

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