कहानी

नयी भोर

रेखा अपने हमसफर के साथ मुंबई आयी थी।

नई नवेली दुल्हन, प्रिय साजन का हाथ थाम, आंखों में सतरंगे ख्वाब सजा महानगर में आयी थी।

रोमांचित थी वह अथक भागता शहर, लालायित थी वह मुंबई की लाईफ लाईन लोकल में बैठ स्वप्न नगरी के नजारे देखने।  

सोचा था उसने, मुंबई में उसकी प्रतिभा उजागर करने का अवसर मिलेगा। उसका कवि हृदय सम्मानित होगा।

कवि सम्मेलन, काव्य गोष्टी में शिरकत कर वह  अपनी रचनायें प्रस्तुत कर वाहवाही लूटेगी।

बडे बडे अरमान संजोती अपने प्रियतम रोमेश के साथ रेखा जादू नगरी में आयी थी।

ओफ्फो, इतना छोटा सा घर…न तो कोई बाग बगीचा, न  तुलसी

 वृंदावन। आंगन ही नहीं तो कहां रचेगी वह रंगोली?

अडोसी पडोसी सब दरवाजे बंद। सब अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त।

भागम-भाग, रोजमर्रा की आपाधापी। सुबह-सुबह टिफिन ले भागते लोग। स्कूल बस में जाते बच्चें।

आया के भरोसे पलते बच्चें। रेल की सुविधा तो थी, पर रोज भागते, दौडते, लोकल में अंदर घुसने की जद्दोजहद करते लोग।

वह खिडकी से झांकती रहती। न कोई बातचीत करने के लिए। 

वे दोनों सोसायटी में टहलने जाने लगे। थोडी सी जान पहचान होगी, तो मन लगा रहेगा।

लेकिन  हर कोई  अपने मोबाइल  पर गाने सुन रहा है। हल्की सी मुस्कुराहट हर कोई  सबके साथ बांटते बस।

गांव में पली बढी रेखा खुली हवा, खिलखिलाती मुस्कुराहट के लिए तरस गयी। तरू की छांव में सुस्ताते लोग,

अमिया के पेड़ की शीतल छांव में खेलता, फुदक-फुदक उछल कूद करता बालमन।

खेतों में लहराती फसल, गुनगुनाती अल्हड़ तरूणाई।

कितनी मासूमियत, कितना अपनापन। नदिया किनारे घूमना, सीप इकट्ठी कर ऐसे सहेज कर रखना जैसे कीमती माणिक मोती हो।

कभी रेत में पकडम पकडाई खेलना। जब तक थक नहीं जाते, घर जाना ही नहीं होता था।

भेल पूरी खाओ, आईस गोला खाओ, गर्म गर्म भुट्टा साथ में कभी-कभी पानी पूरी का आनंद लेते।

साथ-साथ चलचित्र देखने का भी प्लान होता। बतियाती, हंसती, खिलखिलाती सारी सखियां खूब धमाल करती।

शादी के दिन दुल्हा बन आये मुंबई के हीरो रोमेश को देख उसकी किस्मत का बखान कर रहा था हर कोई।

वह भी मन ही मन नये जीवन की रूपरेखा सजा रही थी। कैसे रहेगी वह महानगरी में? साशंक मन से वह मुंबई आयी थी।

 शहरी जीवन के रूखे मन के रंग ढंग देख गांव में बहती स्नेह सरिता, अपनापन, चिलचिलाती धूप में तरू की  

आह्लाद देती छांव उसे बहुत  याद आ रही थी। रोमेश उसको बहलाने कभी बाजार, कभी होटल ले जाता।

उसकी बाहों में वह अपने गम भूल जाती। और पसीने से तर, फिर भी तरोताजा मुंबई वासियों के जज्बे को नमन करती। 

रोमेश ने प्यार से समझाया था उसे, अपने आप में मस्त रहो। अपनी दुनिया खुद बनाओ।

सजाओ सपने और उन्हें पूरा करने के लिए  जी जान से जुट जाओ।

हर पल का आनंद लो। रोजी रोटी तो यहीं हैं हमारी। 

हाथों में हाथ धर दोनों चौपाटी तट पर टहल रहे है। किनारे से मिलने छम छम करती आती लहरें उन्हें गुदगुदा रही थी।

नयी भोर नवल हर्ष  ले आयी थी।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

Leave a Reply