राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारकों के प्रति मेरे व्यक्तिगत विचार
ये पोस्ट किसी को चाटुकारिता लग सकती है, और जो प्रचारक नाम से वाक़िफ़ नही उनको ये मानने में भी नही आयेगा कि ऐसा भी हो सकता है क्या लेकिन ये हकीकत इस कलयुग में ही हो रहा है और इनकी वजह से ही करोड़ों लोग घरो मे आराम की नींद सोते है। ऐसे महान प्रचारकों को सादर दंडवत प्रणाम
आरएसएस के #प्रचारक अपनी पुरी पढाई लिखाई करने के बाद परिवार से आज्ञा लेकर अविवाहित व बिना वेतन के किसी भी जगह व परिस्थिति में पर्दे के पीछे रहकर अपना पुरा जीवन देश के लिए समर्पित करते है वे संघ का प्रचारक कहलाते है।
इतनी बातें सोचने में भी रोंगटे खड़े हो जाते है जो ये करते है वो भगवान का रूप व असाधारण विरले व्यक्ति ही होते है।
हम परिवार में रहते है घर आने में थोडी देर हो जाये तो फोन पर फोन ये वो सब चालू हो जाते है लेकिन ये प्रचारक भी किसी मॉ के पेट से जन्मे बच्चे है, मै तो इनके माता पिता और परिवार को भी साष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूँ कि आपने ऐसे शुरवीरों को जन्म दिया है।
साधारणत किसी भी कर्मचारी या अधिकारी का तबादला होता है तो भी कितने बड़े कार्यक्रम ये वो सब होते है लेकिन इन प्रचारकों का तबादले होने पर एक थैले मे दो जोड़ी कपड़े और कुछ साहित्य लेकर तुरंत प्रभाव से रवाना। जिस जगह गये वहाँ के हो गये।
हमारा स्वभाव भी लालची है हम चाहते है कि ये प्रचारक सब कुछ हमारी मदद करे साथ चले, ये करे वो करे लेकिन हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी ये बनती है कि हम सब गृहस्थ इन मॉ के सपूतो का ध्यान रखे और इनके सहयोगी बनकर देश सेवा के कार्य में मदद करें। क्योंकि ये देश सेवा करने आये है मेरे तेरे व्यक्तिगत काम करने के लिए नही।
मेरे व्यक्तिगत जीवन मे तो सबसे उपर किसी का दर्जा है तो इनका है और मेरा तो मानना है कि साधु संत महात्माओं से भी उपर के दर्ज़े पर है तो ये संघ के प्रचारक है क्योंकि ये बिना किसी आडम्बर के परिवार छोडकर और पुरा समय यानि एक मिनट भी बिना तय सिस्टम के नही चलते।
महीनों पहले के कार्यक्रम तिथि तय है हम सोचने पर मजबूर हो जायेगे कि इतनी व्यवस्थित दिनचर्या के बावजूद भी हर एक कार्यकर्ता की सार संभाल करना ये सब भी केवल प्रचारक ही कर सकते है।
विश्व के सबसे बड़े संगठन के सिपाही होने के बावजूद भी ट्रेन के जनरल कोच में नीचे सोकर करते सफर करते हुए, बस स्टेंड पर पंक्ति में खडे होकर टिकट लेते हुए, साधारण पंगत में भोजन करते हुए, बिना चमक धमक के साधारण कुर्ते पजामे में, कई बार देरी होने पर बिना किसी को कुछ कहे भूखे भी सो जायेगे, किसी के घर जाकर वहा भी बिना कहें व्यवस्था संभाल लेगे, हजारो स्वयंसेवको कार्यकर्ताओं की हर एक बात को सुनकर उसकी पैरवी करने वाले भी यही प्रचारक दिखेंगे।
मजे कि बात ये भी है कि परिवार में एक अफसर या नेता बनता है तो कई पीढ़ियों तक काफी हद तक भौतिक सुविधाओं की कमी नही रहती है लेकिन इन प्रचारकों के घर जाकर देखेंगे तो ध्यान में आयेगा कि परिवार अपने बुते पर जो कर रहे है वो करे बाकी परिवार को इनसे कोई लाभ नही है।
इनकी कार्यशैली और अंदर से जानना है समझना है तो उसका एक ही रास्ता है और वो है एक घंटे संध की शाखा में जा कर देखिए
— शिवभूषण सिंह सलिल