कविता

चाय

राह –ए-तलब चुस्कियाँ नहीं बुझती,
सनम –ए- जयका लबों से नहीं उतरती ,
सर्द-ये मौसम हो या गर्मियों का आशियाना ,
जान तेरे बगैर दिन-ए- रात नहीं गुज़रती ।

कमबख्त -ए-रंग तेरा सँवला नशीला ,
उस- पे –ए कुल्हड़ का प्याला वसीला,
हाथों में भरकर उठालूं जब पास अपने ,
तेरी खुशबू से ही शुरू यह सिलसिला ।

क्या जादू है तेरे आलम –ए- हुस्न में ,
देख तुझे चुस्ती भर आती है जिस्म में ,
तू न कम ,ना ही किसी उल्फत से ,
तुझे पाने मैं हर पल रहूँ मैं बेचैनी में ।

इश्क -ए-इज़हार खामोशी से दमकें,
ठिठोरती ठंड में यूँ यारों की दस्तकें ,
मिले जब नुक्कड़ पर चाय के पैमाने ,
तुम्हें याद करते करते चुस्कियाँ लें हँस के।

— वर्षा शिवांशिका

वर्षा शिवांशिका

निवास स्थान : कुवैत । सम्प्रति : विभागाध्यक्षा (हिंदी), सलमिया इंडियन मॉडल स्कूल, कुवैत। शिक्षा :– स्नातकोत्तर, बीएड।

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