गीत/नवगीत

शान्ति

इस बार जब, तुम बाजार जाना
थोड़ी सी शान्ति,भी खरीद लाना।

आजकल, घर-घर में इसकी बड़ी, कमी है
सब कुछ, होकर भी मन में, शान्ति, नही है ।

अहम् और ईर्ष्या, से है दोस्ताना
पीछे छूटा वह, झुकने का जमाना

इस बार जब, तुम बाजार जाना
थोड़ी सी शान्ति,भी खरीद लाना।

और खर्चों में थोड़ी, कमी कर लेंगे
जिह्वा पर थोड़ी, लगाम कस लेंगे
सैर-सपाटा, भले ही, कम कर लें
इसको न, हल्के, में निपटाना।।

इस बार जब , तुम बाजार जाना
थोड़ी सी शान्ति,भी खरीद लाना।

इतनी आसानी, से नही मिलेगी
लम्बी सी लाइन, लगानी पड़ेगी
गूगल पर पते, का जायजा लेकर
बुलंद इरादों से, कदम बढ़ाना।।

इस बार जब , तुम बाजार जाना
थोड़ी सी शान्ति,भी खरीद लाना।

सुना है, डाक्टर साहब, के पास
हर मर्ज की, अचूक , दवा है
हैं, ढेर सारी, अनमोल, डिग्रियां
और बरसों-बरस, का तजुर्बा है।।

आज तक, कोई, निराश, न लौटा
उनको ही अपना, दुखड़ा सुनाना।

इस बार जब, तुम बाजार जाना
थोड़ी सी शान्ति,भी खरीद लाना।

एक पहुंचे हुए,संत श्री,भी आए हैं
देश विदेश में, बड़ा नाम,कमाए हैं
मुफ्त में, ज्ञान की, वह गंगा बहाते
हो सके तो ,उनको भी, आज़माना

इस बार जब, तुम बाजार जाना
थोड़ी सी शान्ति,भी खरीद लाना।

थोड़ी भी मिली, तो काम चलेगा
कुछ दिन, मन को, सुकून मिलेगा
सुना है, बांटने से, बढ़ जाती है
बेझिझक सबको, बतलाते आना।

इस बार जब, तुम बाजार जाना
थोड़ी सी शान्ति,भी खरीद लाना।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई

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