महाकुंभ ही मोनालिसा बन आया
महाकुम्भ में मोनालिसा की,
महकती-सी मुस्कान,
चंदन-रुद्राक्ष-मोती माला बेचती,
बड़ी अनोखी शान।
खूबसूरत ग्रीवा वाली,
लहराते हुए बड़े-बड़े झुमके,
हिरनी-सी आंखों वाली,
तनिक नहीं शर्माती,
बात करते बेखटके।
महाकुंभ ही मोनालिसा बन आया,
इसकी छवि ने जग को है तरसाया,
महाकुंभ भूल मोनालिसा को पूजें,
अजब जमाने ने गज़ब है ढाया।
— लीला तिवानी