गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उदासियों में भी चेहरे पे रोशनी थी बहुत
वो मेरे साथ थी जब, ख़ुश ये ज़िंदगी थी बहुत
क़रीब रह के भी सागर के बहुत प्यासा था
रहा जो सहरा में तो कंठ में नमी थी बहुत
मैं ठाट बाट से रहता हूँ पर सुकून नही
कभी अभाव थे जीवन में तो ख़ुशी थी बहुत
वो शख़्स ख़ास था अंदाज़ ए बयां में अपने
तभी तलक ही कि जब उसमें सादगी थी बहुत
उसे समझ न सके हम तमाम बरसों में
सो आज लगता है कि उसमे ताज़गी थी बहुत

— ओम निश्चल

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