आओ,
सोये हुए सपनों पर
पंख लगाते हैं
तोड़ते हैं कसी बेड़ियाँ
थोड़ी दौड़ लगाते हैं
भागते हुए समय के साथ
असंभव भी नहीं हैं फिर से पनपना
तो,
हँसते हैं, बोलते हैं
और खिलखिलाते हैं।।
— साधना सिंह
आओ,
सोये हुए सपनों पर
पंख लगाते हैं
तोड़ते हैं कसी बेड़ियाँ
थोड़ी दौड़ लगाते हैं
भागते हुए समय के साथ
असंभव भी नहीं हैं फिर से पनपना
तो,
हँसते हैं, बोलते हैं
और खिलखिलाते हैं।।
— साधना सिंह