कविता

फाल्गुन

मन मचल मचल पागल हुआ जाये 

फागुन की मस्तियों में 

रंगों की होली में

मस्त कोयल कूक रही 

टेसू छटा बिखेरे लाल लाल 

आम बोराय झूम रहा 

बिखराये मस्त सुगंध 

होली का उल्लास है 

उड़े रंग ग़ुलाल 

होली की मस्ती में 

डूब कर रंगों में 

मन हो भाव विभोर 

सब बैर भूलकर 

मन के संताप जला कर

आओ मिले गले 

बांहों में कस बांध लें

करदें एक दूसरे के गालों को लाल 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020

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