विज्ञान

गगन से ग्राम तक : इंटरनेट का नव युग

भारत में डिजिटल क्रांति की गति पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार तीव्र हुई है, वह वैश्विक स्तर पर एक मिसाल बन चुकी है। शासन की “डिजिटल भारत” योजना, दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और अंतरजाल की बढ़ती पहुँच ने देश के अधिकांश हिस्सों को तकनीकी रूप से सशक्त बनाया है। इसी क्रम में अब एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। देश की दो प्रमुख दूरसंचार कंपनियाँ — रिलायंस जिओ और भारती एयरटेल, पृथक-पृथक रूप से एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स से समझौता कर रही हैं ताकि भारत में स्टारलिंक उपग्रह आधारित अंतरजाल सेवा की शुरुआत की जा सके। यह विकास केवल तकनीकी दृष्टिकोण से नहीं, अपितु सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय रणनीति की दृष्टि से भी अत्यंत परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकता है।

स्टारलिंक, जो स्पेसएक्स की एक उपग्रह आधारित अंतरजाल सेवा है, का उद्देश्य पृथ्वी के प्रत्येक कोने तक तेज और स्थिर अंतरजाल पहुँचाना है, विशेषकर उन क्षेत्रों में, जहाँ परंपरागत तार-बेसिक ढाँचा पहुँचना कठिन है। भारत जैसे विशाल भौगोलिक और सामाजिक विविधता वाले देश के लिए यह तकनीक एक युगांतरकारी परिवर्तन ला सकती है। विशेषतः ग्रामीण, जनजातीय और पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ आज भी अंतरजाल की उपलब्धता सीमित है, वहाँ यह सेवा एक संजीवनी के समान होगी।

यह निम्न पृथ्वी कक्षा में स्थित उपग्रहों के माध्यम से अंतरजाल सेवा उपलब्ध कराता है। यह प्रणाली पारंपरिक उपग्रहों की तुलना में कम समय विलंब और अधिक गति प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, उपग्रहों की विशाल संख्या तथा व्यापक क्षेत्रीय पहुँच इसे और अधिक विश्वसनीय बनाती है। भारत में जहाँ अब भी अनेक क्षेत्रों में सुचारु नेटवर्क की कमी है, वहाँ यह तकनीक एक सार्थक समाधान प्रस्तुत करती है।

रिलायंस जिओ और भारती एयरटेल द्वारा इस दिशा में उठाया गया कदम इस बात का संकेत है कि दोनों कंपनियाँ भविष्य की संभावनाओं को लेकर सजग और तत्पर हैं। यह समझौता केवल व्यवसायिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दूरदर्शिता का भी परिचायक है। जहाँ जिओ ने देश में सस्ती और तीव्र सेवा की पहचान बनाई है, वहीं एयरटेल ने वैश्विक स्तर पर तकनीकी नवाचारों से जुड़कर अपनी व्यापक दृष्टि को प्रमाणित किया है।

इस समन्वय का सामाजिक प्रभाव अत्यंत गहन होगा। आज भी भारत में “डिजिटल अंतर” एक गंभीर समस्या बना हुआ है। जहाँ एक ओर महानगरों और नगरों में अत्याधुनिक सेवाएँ उपलब्ध हैं, वहीं दूर-दराज़ क्षेत्रों में अब भी लोग सीमित गति वाले जाल से जुड़ने को विवश हैं। ऐसे में यह उपग्रह सेवा न केवल इस असमानता को दूर कर सकती है, बल्कि ग्रामीण शिक्षा, दूरचिकित्सा, कृषिकीय सहायता, ग्रामोन्मुख सेवाओं एवं शासन की योजनाओं की पहुँच को भी सशक्त बना सकती है।

इसके अतिरिक्त, जब देश के सुदूर क्षेत्रों में तीव्र एवं स्थिर सेवा सुलभ होगी, तब स्थानीय उद्योगों, लघु व्यवसायों और नवाचार आधारित कार्यों को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को एक नई ऊर्जा प्राप्त होगी तथा आत्मनिर्भर राष्ट्र की कल्पना को मूर्त रूप दिया जा सकेगा।

यद्यपि इस नवाचार के साथ कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। सबसे प्रमुख चुनौती है—लागत का भार। उपग्रह आधारित सेवा की प्रारंभिक लागत परंपरागत सेवाओं से अधिक हो सकती है। इसके उपकरण जैसे उपग्रह ग्राही यंत्र और विशेष यंत्रवृत्त सामान्य नागरिक की पहुँच से बाहर हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में शासन अथवा सेवा प्रदाता कंपनियों को यह आवश्यक होगा कि वे अनुदान योजना, साझा सेवा केंद्र, अथवा सामुदायिक केंद्रों के माध्यम से इस सुविधा को आमजन तक पहुँचाएँ।

दूसरी चुनौती है—नीतिगत स्पष्टता और विधिक संरचना। भारत में उपग्रह संचार से संबंधित नीतियाँ अभी पर्याप्त स्पष्ट नहीं हैं। स्पेक्ट्रम वितरण, सुरक्षा प्रावधान, गोपनीयता अधिकार और नागरिक हितों से जुड़ी व्यवस्थाएँ इस दिशा में ठोस आधार प्रदान करेंगी। यह आवश्यक होगा कि उपग्रह संचार प्रणाली राष्ट्रीय सुरक्षा के अनुकूल हो एवं विदेशी तकनीकी भागीदारी भारतीय संप्रभुता में कोई हस्तक्षेप न करे।

तीसरी चिंता यह है कि यदि ऐसी वैश्विक सेवाएँ सीधा उपभोक्ताओं तक पहुँचने लगेंगी, तो इससे स्थानीय सेवा प्रदाताओं के अस्तित्व पर भी प्रश्न उठ सकता है। ऐसे में शासन की जिम्मेदारी होगी कि वह एक संतुलित नीति बनाए, जो प्रतिस्पर्धा और समावेशिता दोनों को समान रूप से बढ़ावा दे।

यदि इस सेवा को नीति, योजना और समन्वय के साथ लागू किया जाए, तो यह भारत में तकनीकी रूपांतरण का सूत्रपात करेगा। यह सेवा भारत को न केवल वैश्विक तकनीकी पटल पर स्थान दिलाएगी, बल्कि भारत के आम नागरिक की जीवनशैली में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगी।

यहाँ सरकार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है। सरकार को चाहिए कि वह इस अवसर को केवल एक संचार सुविधा के रूप में न देखे, बल्कि इसे राष्ट्रीय विकास की रीति से जोड़े। डिजिटल शिक्षा, स्वास्थ सेवा, कौशल विकास, आपदा प्रबंधन तथा ग्राम सुधार योजनाओं के साथ इस सेवा को समन्वित किया जा सकता है।

आज भारत का दूरसंचार क्षेत्र जिस गति से उन्नति कर रहा है, वह संकेत देता है कि अब हमारी यात्रा पारंपरिक सेवा से परे उपग्रह सेवा की ओर बढ़ रही है। जब ग्रामीण भारत में अंतरिक्ष से संचालित सेवा पहुँचेगी, तब हम वास्तव में एक नव भारत के नव निर्माण की ओर अग्रसर होंगे।

निष्कर्षतः, यह कहा जा सकता है कि रिलायंस जिओ और भारती एयरटेल द्वारा स्पेसएक्स के साथ किया गया यह प्रयास भारत के डिजिटल इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय बन सकता है। यदि यह सेवा समावेशी, सुलभ और सतत रूप में लागू होती है, तो यह आम नागरिक के लिए केवल सुविधा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण का माध्यम होगी। यही भविष्य का भारत है — एक ऐसा भारत जहाँ अंतरिक्ष से भी ज्ञान और अवसर की वर्षा हो।

— अवनीश कुमार गुप्ता

अवनीश कुमार गुप्ता

साहित्यकार, स्वतंत्र स्तंभकार, समीक्षक एवं पुस्तकालयाध्यक्ष पता: प्रयागराज 211008, उत्तर प्रदेश मोबाइल: 8354872602 ईमेल: [email protected]

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