हैवानो इंसान बनो
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |
अहं भरी दीवार गिराकर,प्रेम भरी दीवार चुनो |
मुट्ठी बांधे जग में आए,हाथ पसारे जाओगे |
धन दौलत यह माल खजाना,साथ नहीं ले पाओगे |
लोभ मोह तो मकड़जाल है, निकलो बाहर बात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |
मनुज स्वार्थ में अंधा होकर, कोमल हृदय दुखता है |
महल दुमहले मोटर गाड़ी के मद में इतराता है |
माया नगरी में माया की क्षण भंगुर है जात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |
धर्म जाति के इन झगड़ों में उलझ- उलझ दम तोड़ रहे|
आतंकी बन चीर कलेजा गहरी खाई खोद रहे |
दगाबाज ही इक दिन जग में खुद से खाता मात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |
रावण,कंस,हिरणयाकश्यप कौरव यही बताते है |
जो अधर्म की राह चलें है वो समूल मिट जाते है |
वेद पुराण उपनिषद गुन लो नहीं मिलेगी मात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”