गीत/नवगीत

हैवानो इंसान बनो

चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |
अहं भरी दीवार गिराकर,प्रेम भरी दीवार चुनो |

मुट्ठी बांधे जग में आए,हाथ पसारे जाओगे |
धन दौलत यह माल खजाना,साथ नहीं ले पाओगे |
लोभ मोह तो मकड़जाल है, निकलो बाहर बात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |

मनुज स्वार्थ में अंधा होकर, कोमल हृदय दुखता है |
महल दुमहले मोटर गाड़ी के मद में इतराता है |
माया नगरी में माया की क्षण भंगुर है जात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |

धर्म जाति के इन झगड़ों में उलझ- उलझ दम तोड़ रहे|
आतंकी बन चीर कलेजा गहरी खाई खोद रहे |
दगाबाज ही इक दिन जग में खुद से खाता मात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |

रावण,कंस,हिरणयाकश्यप कौरव यही बताते है |
जो अधर्म की राह चलें है वो समूल मिट जाते है |
वेद पुराण उपनिषद गुन लो नहीं मिलेगी मात सुनो |
चार दिनों की मिली जिंदगी,हैवानों इंसान बनो |

— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016

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