डिफॉल्ट

/ कल्पना के संसार में…. /

सीख नहीं पाया अब तक मैंने
शब्दों को जाल में फंसाकर
बाजार की दुनिया में ले आना
एक संवेदना है मेरे अंदर
सत्य – तथ्य की खोज है-
अनुभव का सार है कि यहां
मनुष्य अपने आपको बेचता है
सबसे बड़ी कला है यह जीने का
जाति – धर्म के आवरण में
अपना असला रूप खोलना
दूसरे के जीने का अधिकार छीनना
अधिकार की लालच में
अपना का रंग बदला
भ्रष्टाचार के झूले में मस्त झूलना
सुख – भोग के दौड़ में
एक दूसरे को भूल जाना
यहां न मां – बाप की चिंता है
और न भाई – बंधुजनों की
समाज के हित की बात नहीं
भविष्य के धृवतारे पर निगाह रखकर
साथ – साथ चलना नहीं
सच्चाई झूठ – धोखे के नीचे दब गयी
स्वार्थ मनुष्य को निगला है,
चलता है समाज मनुष्य के बगैर
कहानी तो बहुत पुरानी है यह
दोहराते हम आगे के निकल जाते हैं
ममता – समता, बंधुता की कल्पना में
जिंदगी काट देते हैं ।

— पैड़ाला रवींद्र नाथ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।

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