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एक अविस्मरणीय कवि सम्मेलन

घनन-घनन घण्टियों की तरह मंच पर कविता घनघना रही थी। बीच-बीच में बड़े घण्टे की ध्वनि सरीखी टन्न की ध्वनि श्रोताओं की ध्यान मुद्रा को चैतन्य कर देती, अद्भुत कविताओं पर उठी करतल ध्वनियों की गड़गड़ाहट व वाह-वाही श्रोताओं को आनन्द और कवियों को सामूहिक गिफ्ट दे रही थीं। प्रसंग था रँगीले राजस्थान में हाड़ौती की धरती पर बसे नगर बाराँ के कोटा रोड स्थित रिसोर्ट में राष्ट्रीय सन्त कवि स्वामी परमानन्द जी की अध्यक्षता में प्रातः स्मरणीय हिन्दुआणा सूर्य महाराणा प्रताप के 485 वें जयन्ती पर्व पर आयोजित भव्य, दिव्य व विराट अखिल भारतीय कविसम्मेलन का, जिसमें कवियों ने अपनी वाणी से राणा और मेवाड़ के शौर्य के साथ ही भीलों के योगदान का यशोगान किया वहीं ऑपरेशन सिन्दूर के चलते देश की वर्तमान स्थिति पर मुखर मत व्यक्त किए।
जब चुटकुलेबाजों की गिरफ्त में कविता के मंच आ रहे हों अकविता को मंच पर परोसा जा रहा हो, श्रोताओं को सच्ची और अच्छी कविता से दूर सा कर दिया गया हो, श्रोता चुटकुले और फूहड़ फब्तियों को ही कविता मान बैठे हों, ऐसे समय में इन समस्त धारणाओं का खण्डन कर रहा था यह कविसम्मेलन। आजकल ऐसे आयोजन प्रायः कम ही हो रहे हैं।
राष्ट्रीय भावना से पूरित मुम्बई के ओजस्वी कवि डॉ राज बुन्देली जी के संचालन में रात्रि के ठीक आठ बजे से कवि सम्मेलन का श्री गणेश हो गया। उत्तर प्रदेश के बस्ती से पधारीं यशस्वी कवयित्री डॉ शिवा त्रिपाठी सरस ने सरस वाणी में सरस्वती वन्दना की ‘शब्द अर्चन है मांँ विराजो कण्ठ में शुचि ज्ञान का विस्तार दो। पूरित करो हर साधना वीणा को फिर झंकार दो’। तत्पश्चात राजपूत समाज बाराँ द्वारा देश के विभिन्न स्थानों से आए वाणी पुत्रों का राजस्थानी साफा बँधवा कर अभिनन्दन किया गया।
विषय प्रवर्तक इतिहासविद कवि जगदीश जलजला ने अपने प्रखर स्वर में कवियों का स्वागत परिचय व राणा के अनसुने वृत्तों का ऐसा बखान किया कि समूचा सदन तालियों के साथ राणा और भारत माता के जयकारों से गूँज उठा, इस समय का रोमांच देखते ही बनता था। सचमुच अद्भुत, अद्वितीय।
प्रताप वन्दना के प्रथम चरण में कवि सोनू सुरीला ने अपने गीत ‘म्हारा एकलिंग दीवान, मेवाड़ धरा की शान, राणा थारी जय जयकार से प्रारम्भ किया, तो बच्छराज राजस्थानी ने अपने छन्दों की माला ‘जो अपनी मातृभूमि के लिये बलिदान करते हैं। धरा और आसमाँ उनके गुणों का गान करते हैं।’ रचना सुनाई। हरीश प्रजापति ने आपरेशन सिन्दूर पर अपना काव्य पाठ किया।
कोटा से आए देश के वीर रस के प्रसिद्ध कवि राजेन्द्र गौड़ ने अपनी भगवा रचना से वातावरण को भगवा बनाते हुए पाकिस्तान के दम्भ को चूर करने वाली रचना ‘सिन्दूर मिटाने वालों को सिन्दूर मिटा कर चला गया।एक रात में पाकिस्तानी दम्भ गला कर चला गया’ पढ़ कर भारत माता के जयकारों से वातावरण को देशभक्ति मय बना दिया उन्होंने भारतीय संस्कृति और आपरेशन सिन्दूर को मुखर स्वर देकर प्रताप के शौर्य को साक्षात् कर दिया।
बाराँ के कवि नाथूलाल निर्भय ने अपनी राजस्थानी रचना ‘मर मर पचग्या एक न मानी, वाँ मुगला का बाप की । या धरती छ वीर शिरोमणि महाराणा परताप की’ जोशीली रचनाएँ सुनाईं और खूब वाहवाही लूटी।
कवयित्री शिवा सरस को पुनः आहूत किया तो श्रोताओं की उत्सुक सरसता शुचिता का आभूषण बन गई। उन्होंने घनाक्षरियों और गीतों से सभा में समा बाँध दिया। उन्होंने ‘द्रोहियों के दल को कर दिया छिन्न भिन्न राणा जी की गाथा सारे जग से महान है।’ जैसे वीर रस के छन्दों से पाण्डाल में जोश भर दिया।
हाड़ौती के प्रसिद्ध गीतकार बाबू बंजारा ने अपने अंदाज में चेतक की अन्तिम यात्रा और प्रताप की संवेदना को व्यक्त करते हुए ‘सूतों काॅंई रे अब तो जाग , युद्ध में पवन वेग ज्यूॅं भाग, भाइली और निभाल्याॅं रे , धरा को मान बचाल्याॅं रे’ से चेतक की स्वामी भक्ति को शब्द प्रदान किए तो ऐसा लगा कि विस्मयादिबोधक अहा-अहा शब्द का औचित्य आज सार्थक हो उठा हो।
जब इन्दौर के नवरस सिद्ध राष्ट्रीय कवि गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण” को बुलाया गया तो श्रोताओं ने उन्हें सिर-माथे पर बिठा लिया। क्या जबरदस्त और विलग रचनाएँ सुनने को मिलीं हैं वह दृश्य अविस्मरणीय हो गया जब उन्होंने पढ़ा “बंशी नहीं बिगुल बजने दो धुआँधार हो जाने दो, दुश्मन युद्ध चाहता है, तो एक बार हो जाने दो। रोज-रोज की किच-किच से यदि पिण्ड छुड़ाना है तो फिर, जो होगा देखा जायेगा आर-पार हो जाने दो।” तो वातावरण राष्ट्रीय ऊर्जा से भर गया। देशभक्ति से ओत-प्रोत जयकारे लगने लगे। उन्होंने पीओके को हाथ पुनः निकल जाने पर कहा- “क्षमादान का पा गया गौरी फिर वरदान। आँखों के होते हुए चूक गया चौहान।।” उनकी रचनाएँ कविता की गुणवत्ता का भी बखान कर रही थीं।
मुम्बई से वीर रस के सुनाम धन्य कवि डॉ राज बुन्देली ने राजस्थान की शौर्य गाथा गाते हुए ‘गोरा बादल पत्ता जैसे बलिदानी रणधीरों के। कितने नाम गिनाऊँ तुमको राजस्थानी वीरों के।’ सुना कर राजस्थान के कण कण में व्याप्त पराक्रम का वर्णन करते हुए उनकी ओजस्वी कविता की शुचिता और उसकी आभा का साक्षात् दर्शन हो उठा। उनकी वाणी में भवानी के मन्दिरों सरीखे शंखनाद और सिंहनाद दोनों समाहित थे। अन्त में कवि सम्मेलन के प्रवर्तक राष्ट्रीय कवि जगदीश जलजला ने राष्ट्र जागरण की अलख जगाते हुए ‘सनातनी सपूत हो कृपाण खींच लो जरा , नवीन कल्प के लिए पुकारती वसुन्धरा’ से श्रोताओं में शौर्य और उत्साह का संचार करते हुए अपने सनातनी छन्दों की माला से सम्मोहित करते हुए प्रताप की स्तुति में अपनी कविता ‘जिस पौरुष की प्रबल कहानी सारी धरती गाती है । उसका वन्दन करके मेरी कलम धन्य हो जाती है’ सुना कर सिद्ध किया कि हल्दी घाटी के युद्ध के विजेता महाराणा प्रताप ही रहे थे। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में राष्ट्रीय सन्त आचार्य परमानन्द ने चेतक के बलिदान की काव्यात्मक प्रस्तुति देते हुए प्रताप जयन्ती पर सम्पन्न काव्य यज्ञ में आहुति देकर कविसम्मेलन को ऐतिहासिक सफलता के शिखर पर स्थापित करने वाले समस्त राष्ट्रनिष्ठ और साहित्य निष्ठ श्रोताओं सहित समस्त अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य का यह अनुष्ठान बाराँ की धरती से सज्जन शक्ति के जागरण का शंखनाद है , प्रताप का शौर्य पराक्रम चिरन्तन था, है और रहेगा। राजस्थान के कण-कण में प्रताप के संस्कार हैं, जिनके रहते कोई शत्रु वक्र दृष्टि से भारत की और देखने का साहस नहीं कर सकता। अन्त में हनुमान चालीसा के सामूहिक पाठ से कार्यक्रम का समापन हुआ। आयोजन समिति के सरोज दीक्षित डॉ सुरेश मेघवाल और द्वारका लाल प्रजापति ने अतिथियों का अभिनन्दन एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस रिपोर्ट के अन्त में इतना ही कहूँगा कि बहुत समय बाद सुनने को मिले इस अविस्मरणीय कवि सम्मेलन में लग रहा था जैसे भगवती सरस्वती समूची धरती से चलकर मानो आज बाराँ में ही स्थिर हो गई हो। श्रोताओं की अपार भीड़ प्रताप और भारत माता के जयकारे लगा रही थी। कवियों को श्रोताओं से मिलतीं तालियों और वाह-वाही से मिलता हुआ सम्मान उनकी रचनाओं और उनकी प्रस्तुति को पुरस्कृत कर रहा था। आदि से अन्त तक के कार्यक्रम में ऐसा लग रहा था जैसे गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई सच में यहाँ सार्थक हो रही हो “मनहुँ वीर रस सोवत जागा”।
कविसम्मेलन के संयोजक पूर्व प्रधानाचार्य कैलाश शर्मा ने बताया कि प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी राष्ट्र आराधना के इस उत्सव का संयुक्त आयोजन हिन्दी साहित्य भारती, एकल अभियान और भक्त मण्डल के द्वारा राष्ट्रीय सन्त आचार्य परमानन्द की अध्यक्षता और राधेश्याम बैरवा विधायक बाराँ अटरू, नरेश सिंह सिकरवार जिलाध्यक्ष भाजपा नन्दलाल सुमन पूर्व जिलाध्यक्ष भाजपा, जयेश गालव युवा नेता भाजपा, राधेश्याम गर्ग जिला संघचालक, हरगोविंद जैन अध्यक्ष नागरिक बैंक, आनन्द गर्ग पूर्व जिलाध्यक्ष भाजपा, सतीश आरोड़ा समाज सेवक, यशभानु जैन,प्रमोद शर्मा आदि के आतिथ्य में प्रताप की आराधना का काव्य यज्ञ हुआ सम्पन्न हुआ।

— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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