जरूरत से ज्यादा चतुराई
सामाजिक रीति रिवाजों को छोड़
जिसने भी की जरूरत से ज्यादा चतुराई,
तो समझ लीजिए उनकी नीयत में है ढिठाई,
वह सत्य की राह पर चलना नहीं चाहता,
संवैधानिक तरीके से मचलना नहीं चाहता,
झूठ और फ़रेब रग रग में होगा,
वक्त आ जाये तो वतन को देगा धोखा,
गर कहे अपने मुख से मेरा काम चोखा,
ऐसों पर फिर हम करें क्यों भरोसा,
पिरोई कहानी पर धोखा मिलता है अक्सर,
ईमानदारी के चोले में लिपटा हुआ
वो हो सकता है चोर,तस्कर,
अंधा यकीन से,
खुद के न बनाये मशीन से,
हरपल रहने होंगे सावधान,
नैतिकता के चोले में डाकू दे सकता है ज्ञान,
जो संतुष्ट नहीं देश के संविधान से,
प्रगति पथ पर तत्पर ज्ञान व विज्ञान से,
जो भूल गया हो नियम व कायदा,
आंखों में अंधा हवस और फायदा,
जरूरत से ज्यादा चतुराई
राहों को मोड़ सकता है,
तर्क वितर्क का रास्ता छोड़ सकता है,
करनी होगी वतन की हर वक्त निगहबानी,
सतर्क रहो हमेशा न आ जाये कोई परेशानी।
— राजेन्द्र लाहिरी