कविता
हमारे जीवन में
कुछ भी नहीं है एक सा ।
हमारी चाहतें
हमारे स्वप्न, हमारे संघर्ष की
हमारे जय- पराजय
टूटने – जुड़ने की
बेजोड़ कथाएं।
इच्छा की दुनिया में
जीना – मरना।
आंसुओ पर टिकी आस्था
उम्मीदों पर टिकी उम्मीदें।
कुछ भी तो नहीं है एक सा
एक सी धरती
एक सा आसमां
एक सी आंखों से
क्यों नहीं दिखता जहां
एक सा।
इस नश्वर संसार में
कुछ भी नहीं है एक सा।
जानता हूं मैं भी
एक सा नहीं दिखेगा
इस धरती पर कुछ भी।
हालांकि
एक सा दिखने – दिखाने की
अनंत कोशिशें
अभी भी जारी हैं
जारी रहेंगी
युगों – युगों तक।
— वाई. वेद प्रकाश