धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

शास्त्रार्थ

शास्त्रार्थ होता तो होता, पर आप यह सोचो कि यह समय की बर्बादी है कि नहीं । अरे इतनी देर भगवान का भजन करना चाहिए कि शास्त्रार्थ और वाद-विवाद करना चाहिए ।
इसलिए भक्त की एक ही पहचान है ।भक्त वह है जो वाद-विवाद में न पड़े।हम लोग वाद-विवाद में ही अपने को भक्त समझते हैं, हमने ऐसी बात कही कि वह चुप हो गये। हमारे भगवान कोई कम हैं? अरे भाई ठीक है, पर क्यों वाद-विवाद करना?
तुलसीदास जी से किसी ने कहा कि आपके राम जी भगवान तो हैं, पर थोड़ा कम हैंं और बोले श्री कृष्ण पूरे भगवान हैं , राम जी थोड़े कम हैं । तुलसीदास जी तो खुश हो गए और उसके हाथ जोड़ लिये, उसके आगे सिर झुकाने लगे । वह आदमी बोला– हमने तो आपके राम जी को कम बताया, आप खुश हो रहे हो। तुलसीदास जी बोले– तुमने यही तो कहा कि राम जी कम भगवान हैं । मुझे तो आज पता लगा कि वे भगवान भी हैं, भले ही कम सही ।अब वे भगवान न भी होते–जौं जगदीश तौ अति भलो, अगर वे भगवान हैं तो बड़ी बढ़िया बात है और न भी हों- – जौं महीस, अगर वे राजा हैं- – तौ भाग– तो मेरा भाग्य है ।••••• क्या चाहते हो?बोले— हमें भगवान और राजा से कोई लेना देना नही है ।

तुलसी चाहत जनम भरि राम चरन अनुराग।।

मैं तो जीवन भर उनके चरणों में अनुराग चाहता हूं ,बस यही। तो भक्त कभी विवाद में पड़ता ही नहीं । एक जगह तुलसीदास जी कहते हैं- –

सिय राम सरूप अगाध अनूप विलोचन नैनन को जलु है।
श्रुति राम कथा, मुख राम को नामु हिये पुनि रामहि को थलु है ।
गति रामहि सों, मति रामहि सों रति राम सों, रामहि को बलु है ।

यह सब की बात कह रहे हैं? तुलसीदास जी बोले– नहीं ।सबकी अपनी अपनी भावना है ।हमारी व्यक्तिगत यह बात है ।

सबकी न कहौं , तुलसी के मतें इतनो जग जीवन को फलु है ।।

मेरा अपना यह विश्वास है । विनय पत्रिका में आप जब जब पढ़ेंगे तो तुलसीदास जी व्यक्तिगत बोलते हुए दिखाई देते हैं । वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते।

भरोसो जाहि दूसरो सो करौ।

जिसे कोई और अवलम्व हो ,करो।

मोहि तो राम को नाम कल्पतरू कलि कल्यान फरो ।

मुझे तो श्री राम जी का नाम ही कलियुग में कल्पवृक्ष हो गया है । यह मेरी अपनी बात है और जिसको जो भरोसा हो सो करो। तो फिर कहा कि दूसरों के जो मत हैं- – वह? तो तुलसीदास जी तुरंत कहते हैं- –

करम उपासन ज्ञान वेद मत सो सब भाँति खरो।

जो दूसरे कर्म की बात कर रहे हैंं, ज्ञान की बात कर रहे हैंं, उपासना की बात कर रहे हैंं । तुलसीदास जी बोले– वे सब खरे हैं, बिलकुल सच्चे हैं, मार्ग सौ प्रतिशत सच्चे हैं ।•••• जब सच्चे हैं तो आप क्यों नहीं वह बात मानते हैं? तुलसीदास जी बोले– क्या करें—

मोहि तो सावन के अन्धे ज्यों सूझत रंग हरयो।

मुझे तो वर्षा ऋतु में किसी की नेत्र ज्योति चली जाय, तो उसे बारहो महीने हरे ही हरे का आभास होता है कि हरियाली चारो तरफ है । बोले– इसी तरह मुझे तो राम नाम पर ही पूरा विश्वास और भरोसा है । यह मेरी व्यक्तिगत बात है ।
तो भक्त अगर हम हैं तो हमारी एक ही पहचान होनी चाहिए कि हम वाद-विवाद में तो नहीं पड़ते हैं, हम किसी से बहस में तो नहीं पड़ते हैं ।

तेरे भावे जो करै भलो बुरो संसार।
नारायण तू बैठि के अपनो भवन बुहार।।

शिवभूषण सिंह 'सलिल'

Kanpur M- 94501 43788 Sengershiv@gmail.com

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