ग़ज़ल गीतिका सजल
ग़ज़ल औ सजल में लड़ाई न होती।
अगर बात भाषा की आई न होती।।
नया छंद कहकर रखा ग़ पे स को,
जरा सोचते, जग हंसाई न होती।
किया ग़ज़ को सज जो हटा करके नुक्ता,
कहो क्यों तुम्हारी खिंचाई न होती?
ग़ज़ल गीतिका औ सजल एक हैं जब,
ग़ज़ल मानने में बुराई न होती।
न आशय न लक्षण न मीनिंग जुदा है,
अवध फिर सजल की लिखाई न होती।
— डॉ. अवधेश कुमार अवध