चुन्नट-चरित्र
भगवान से लेकर इंसान तक सबको चुन्नटों से प्यार है।इसीलिए मानव मात्र ही नहीं सभी जीव जंतुओं में चुन्नटों की भरमार है।जब चुन्नट-चर्चा चली है तो उसकी भी अपनी निर्धारित गली है।इन चुन्नटों को व्यर्थ की चीज मत समझ लीजिए। ये बड़े काम की चीज हैं।हम और आपसे ज्यादा दूर भी नहीं;यहीं कहीं नगीच हैं। क्षमा कीजिए , यह तो बताकर नहीं दूँगा कि ये कहाँ -कहाँ हैं।बड़े ही काम की हैं ,जहाँ -जहाँ हैं।
ये प्राकृतिक भी हैं और कृत्रिम भी।प्रकृति की बनाई चीजों और जीव जंतुओं की देह में इनका महहत्वपूर्ण स्थान है।ये चुन्नटें दृश्य हों अथवा अदृश्य ;किंतु रात-दिन अपने काम में कोई शिथिलता नहीं लातीं। आदमी -औरत की लज्जावत कदापि नहीं शरमातीं।जब इन्हें जो कुछ करना होता है,बखूबी करती हैं और अपना काम करने के बाद पुनः पूर्ववत सिमटती हैं।चुन्नटों का अपना ही चमत्कार है।जिसे चुन्नट – चमत्कार के नाम से अभिहित किया जाता है। यह मनुष्य जीवन तो चुन्नट -चमत्कार से चमत्कृत ही हो रहा है।परमात्मा की चुन्नट -प्रणाली से चमत्कृत होकर उसने अपने दैनिक जीवन में पहने जाने वाले अपने वस्त्रों में चुन्नट -चमत्कार को अंगीकार किया है। साड़ी,ब्लाउज,
लहँगा,चुनरी,बुर्का,पेटीकोट आदि सभी में चुन्नट- चमत्कार की बहार है।कली भी फूल बनने से पहले चुन्नटों में सिमटी हुई रहती है।ज्यों -ज्यों उसका विकास होता है,उसकी चुन्नटें खुलती जाती हैं और वह महकते दहकते फूल में तब्दील होती चली जाती है।
चुन्नटों की चारुता चिंतना की चीज है। जैसे माँ की कुक्षि में छिपा हुआ बीज है।अपनी सोच के पन्ने उधेड़ने होते हैं, तभी चुन्नट -चमत्कार के दिव्य दर्शन होते हैं।सामान्यतः चुन्नट बड़ी शर्मीली – सी चीज है।कभी खुलकर सामने न आने का उनका स्वभाव है।एक से एक सटकर आलिंगित होना उनका चाव है। एक छोटा – सा शब्द ,एक प्यारा -सा शब्द, रहता हुआ सदा निःशब्द : चुन्नट।जैसे घूँघट ने अपना घूँघट नहीं उठाया ,वैसे चुन्नट ने भी नहीं चुनमुनाया। वह शांत है,कांत है और अनेकांत है।चुन्नटें एकता और संगठन की मिसाल हैं।
वे स्पष्टवादी हैं,बेमिसाल हैं।
चुन्नट -चरित्र की एक बड़ी दुनिया है।उसने अपनी दुनिया से बाहर आकर झाँकने का कभी प्रयास किया हो,ऐसा इतिहास में कहीं उल्लेख नहीं मिलता।वह तो इस अकिंचन की सूक्ष्म दृष्टि में चुन्नट दिख गई और माता शारदा की करबद्ध लेखनी बहुत कुछ लिख गई।मेरी अपनी दृष्टि में चुन्नट के लिए ‘चुन्नट’ से श्रेष्ठ कोई शब्द नहीं है। यों तो उसे सिकुड़न,शिकन,
प्लेट ,क्रीज़,प्लेट,रफ़ल आदि अनेक नाम दिए गए हैं ,जो विभिन्न भाषा बोलियों के अनुसार हैं,किन्तु जो बात ‘चुन्नट ‘ में है ;वह कहीं नहीं है। हर चुन्नट की अपनी बुनावट है,अपनी सजावट है और अपनी खिलावट है। चुन्नट में भले ही नट आया है ,किंतु वह नटती नहीं है। वह सटती ही सटती है।न उसमें नाटकीयता है और न नटों का चरित्र। सब कुछ साफ -सुथरा और पवित्र है।जन, जीवन ,जंतु और जगत में दृष्टि घुमाइए तो चुन्नट -चमत्कार और चुन्नट-चरित्र की भरमार पाइए। बस गहराई में उतरते जाने की जरूरत है।उदघाट्न के पर्दे को उठाने से पहले इन्हीं के नीचे ढँकी हुई मूरत है। जानने से पहले शोध करना होगा।तभी चुन्नट-चरित्र का उदघाट्न होगा।
चुन्नट -चरित्र की दृष्टि से कवियों और नेताओं का चरित्र एक समान प्रतीत होता है।उनके कथ्य और काव्य में चुन्नटों की परत दर परत खुलती जाती हैं और काव्य या नेताजी का भाषण पूरा होता जाता है।यों तो हर व्यक्ति के चरित्र में चुन्नटों की चहल-पहल है,जहां वह बनाता अपने रहस्य के ताजमहल है। यह विस्तार के विपरीत हैं।इनकी कार्य प्रणाली की अपनी एक रीति है।कम से ही काम चलाना इन्हें बखूबी आता है। इन्ही चुन्नटों की तहों में साड़ी का इजारबंद बड़ा इतराता है। और नारी के पहनावे का गज़ब ढाता है। चुन्नट के कट और तट सभी अर्थपूर्ण हैं।चुन्नट खुली कि सब चूर्ण -विचूर्ण हैं। चुन्नट की चहलकदमी देखिए और चुन्नट को पहचानिए।इसे कोई लज्जाप्रद चीज मत जानिए।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’