अंगीकार
चोरी-चोरी सबसे छिपकर
नैना तेरे कहते अक्सर,
उनको जितना समझ सके हम
क्या तुम इतना प्यार करोगे?
बार-बार हर बार करोगे
मुझको तुम स्वीकार करोगे?
चालाकी हमको ना आती
कभी-कभी कुछ कह ना पाती,
पर इतना तो तुमको जाना
तुम मुझको तो समझे थाती।
जो कभी रूठ जाऊँ तुमसे
तो क्या तुम मनुहार करोगे?
तुम उतना ही प्यार करोगे?
कहो प्यार स्वीकार करोगे?
मन में है कितनी ही बातें
हमने कितनी जागी रातें
पवन वेग से फेके सब चुंबन
अधरों पर सारे छप जाते
उनको चख किए अंगीकार
क्या तुम भी इकरार करोगे
तुम उतना ही प्यार करोगे?
दृग पुलिनों पर आकर थम गये
कुछ तो कहते-रहते रह गए,
बिना छुए वह प्रणय निवेदन
हाय!सोच सोच हम सिहर गए,
सच कहना बाहों में भरकर
तुम मेरा श्रृंगार करोगे?
क्या तुम छक कर प्यार करोगे?
मुझको तुम स्वीकार करोगे?
— सविता सिंह मीरा