कविता

कविता

कविता मन की झील में उठती तरंगों का बवाल है।
कविता सिर्फ़ शब्दों का मायाजाल नहीं, भावों का कमाल है।
कविता स्वेद-मोतियों से चमकता क़िस्मत का लिखा भाल है।
कविता धडकनों का स्पंदन, संवेदनाओं का रजत-थाल है।

कविता है शोषित, पीड़ित, व्यथित की दर्द भरी पुकार!
कविता है अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध गरजती हूंकार!
कविता है भ्रष्टाचार, अनाचार का निषेध करता विचार!
कविता है दशानन, दु:शासन, जयचंद, कंस पर प्रहार!

कविता है पलाश के लाल-केसरिया फूलों की अगन!
कविता है फूलों को चूमती मधुमक्खियों की लगन!
कविता है रंग-बिरंगी तितलियों की कोमल छुअन!
कविता है धरती के वक्षस्थल पर सिर रख सोया गगन!

कविता है कल्पना के अंतरिक्ष की रहस्यमई टोह!
कविता है आत्मा से परमात्मा के मिलन की ऊहापोह!
कविता है अंतरमन में उठते आवर्तों का अनकहा मोह!
कविता है खुद से खुद का समय-समय पर किया विद्रोह!

— कुसुम अशोक सुराणा

कुसुम अशोक सुराणा

मुंबई महाराष्ट्र

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