ग़ज़ल
ग़मों से दूर जाना चाहता है।
बशर अब मुस्कुराना चाहता है।
नहीं रोना रुलाना चाहता है।
समय हँसकर बिताना चाहता है।
नया कुछ कर दिखाना चाहता है।
नया भारत बनाना चाहता है।
नहींभटके हदफ पर जा लगे जो,
लगाना वो निशाना चाहता है।
समय के हैं नहीं अनुकूल जो भी,
सभी रस्में हटाना चाहता है।
— हमीद कानपुरी