कविता

बोलने के लिए वक्त

दीगर बातों पर बोलने के लिए
वक्त ही वक्त है उनके पास,
वो खुलकर कुछ भी अनाप शनाप बोलेगा
भरा हुआ पेट है उनके साथ,
पुरखों की छोड़ी गई संपत्ति,
मजलूमों से लूटी गई संपत्ति,
छल,कपट कर अर्जित की गई संपत्ति,
क्षण भर भी आने नहीं दे रही विपत्ति,
इन सब के होते वो क्यों चुप रहेगा,
जो मन में आये कहेगा,
मोटे और थुलथुल शरीर बता रहा कि
मेहनत से कभी नहीं रहा वास्ता,
बनी बनाई है चलने वाला रास्ता,
उन्हें नहीं पता परिश्रम से निकले पसीने का मोल,
शारीरिक थकान,चिरनिद्रा कितनी है अनमोल,
वो करेगा ही बकलोली,
चिढ़ाता हंसी ठिठोली,
उनके पास कहने को कई बातें हैं
जैसे संविधान ऐसा क्यों है,
व्यवस्था इस प्रकार क्यों नहीं,
प्रगति इतनी है तो दूध से पहले
क्यों नहीं बन पाता है दही,
लफ्फाजी करने वालों
सबसे पहले समझो प्रकृति का नियम,
उसके बाद में गाल बजाते रहना।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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