वयस्क होता बचपन
अक्सर … ट्रैफिक सिग्नल पर ख्वाब बेचते, ठण्ड में जमे से… अलाव सेंकते! जूठन से कहीं हैं भूख मिटाते, फुटपाथ
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Read Moreसतयुग नहीं,,, वो भी कलयुग था ! जब इन्द्र सम पुरुष धर छद्मवेश करते थे शीलहरण और शाप की भागी
Read Moreकितने पाखण्डी बन धर्मगुरु करें ढोंग, अधर्म, पाखण्ड और मनमानी फैलाए तिलिस्म, असत्य की जमीं पर ! कहें… खुद ही
Read Moreत्रासदी है…. क्या छोटा शहर, क्या महानगर… विकृत मानसिकता के व्यक्ति हर जगह पाए जाते हैं । समझ नहीं आता
Read Moreन अभिमान कर, वर्तमान का, पद का, प्रतिष्ठा का, और इसकी ऊंचाइयों का ! होगा कोई और, कल इसका वारिस
Read Moreशिक्षित समाज, ये सभ्य समाज,,, सब्जी-भाजी की तरह, लगती है जहाँ, आज भी… जिस्मों की मंडी ॥ नज़रें करें, तोल-मोल
Read Moreतजुर्बे से लवरेज, बेबस बागबां ! उपेक्षित,,, स्नेहिल रिश्तों द्वारा ! नि:शब्द हो, चाहें,,, जीवन से रिहाई !! अंजु गुप्ता
Read Moreगम्भीरता का ओढ़ लबादा, आज फिर एक वर्ष बाद हिन्दी दिवस पर, फिर बैठा,,, अभिजात्य वर्ग । दे अँग्रेजी में
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