छल कपट
वो मिलते हैं मुस्कुराके खंजर हाथ में छिपाके गले से लगाते हैं पीछे से बार कर जाते हैं हम भी
Read Moreकुछ कुछ भूलने सा लगा हूँ स्मृति भी धूमिल सी होने लगी है उम्र की वजह है या दिन दुनियां
Read Moreन खुला अम्बर न खुली छत है चाँद मुस्कुरा रहा फेंक रहा अपनी चांदनी बरसा रहा अमृत कैसे पाऊं यह
Read Moreशहर की एक तवायफ ने चुनाव लड़ने के लिए पर्चा भरा परचा भरने के बाद अपनी पहली चुनावी सभा में
Read Moreरात के अंतिम प्रहर में शिशु रूप में स्वप्न में देखा अपने आपको बेपरवाह माँ के आँचल से खेल रहा
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