ग़ज़ल
मुझे अस्तित्व ने परखा बहुत है कि मैंने भी उसे सोचा बहुत है उसी का जिक्र करती हैं ये साँसें
Read Moreमैं नींव का पत्थर हूँ मेरा नाम नहीं है रातें हैं मेरे नाम सुबह-शाम नहीं है सदियों से खड़े हैं
Read Moreइस माहौल में गजलें कहना कितना मुश्किल है हर पल तिल-तिल जलते रहना कितना मुश्किल है जिसने पार किया हो
Read Moreगीत उर्दू में लिखें ग़ज़लों को हिन्दी में कहें काव्य धारायें अदब सागर की जानिब यूँ बहें टूट जाएगा अकेला
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