मेरी कहानी 77
डैडी जी को को विदा करके जब मैं ने पैडिंगटन से ट्रेन पकड़ी तो मेरे मन में बहुत खियाल आ
Read Moreडैडी जी को को विदा करके जब मैं ने पैडिंगटन से ट्रेन पकड़ी तो मेरे मन में बहुत खियाल आ
Read Moreबहादर, उस का छोटा भाई हरमिंदर जिस को हम लड्डा बोलते थे (लड्डा उस का बचपन का पियार का नाम
Read Moreउस समय की कुछ मजेदार बातें मैं अगर नहीं लिखूंगा तो यह कहानी पूर्ण नहीं होगी और आज के बच्चे,
Read Moreयह शायद १९५८ की बात होगी जब हम चार दोस्त शहर के एक हाई स्कूल में पड़ते थे। हम गाँव
Read Moreबहादर को भी काम मिल गिया था और हमारी जेब में पैसे आने लगे थे जिस से हम को हौसला
Read Moreपब्ब से निकल कर हम तीनों मैं सुच्चा सिंह और गोरा फोरमैन फाऊंडरी की तरफ जाने लगे । फाऊंडरी पौहंच
Read Moreबहादर को मिलने की तमन्ना लिए मैं रात को सो गया। दुसरे दिन मैं और डैडी जी ने बस पकड़ी
Read Moreआज जब यह ऐपिसोड मैं लिखने बैठा तो कुछ देर पहले की एक बात याद आ गई। वोह यह कि
Read Moreमंगलवार को रात की शिफ्ट ख़तम करके आये गियानी जी तकरीबन एक वजे उठे थे और मुझे कहने लगे ,”गुरमेल
Read Moreजब वोह सिंह मुझे छोड़ कर गए तो मैं ने एक पीस ब्रैड का और एक पीस मीट का खा
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