संस्मरण

मेरी कहानी – 70

मंगलवार को रात की शिफ्ट ख़तम करके आये गियानी जी तकरीबन एक वजे उठे थे और मुझे कहने लगे ,”गुरमेल ! आज हम ने बहुत काम करने हैं ,सो तैयार हो जा ” . कुछ खा पी कर पहले हम बारबर के सैलून की ओर चल पड़े। यह बारबर का सैलून ब्राइट स्ट्रीट में होता था । जब हम वहां पुहंचे तो वहां दो तीन गोरे गाहक भी बैठे थे। उन का काम होने के बाद बार्बर ने मुझे इशारा किया और मैं उस की कुर्सी पर बैठ गिया। ज़िंदगी में पैहली दफा जब मैं बैठा तो मेरे ज़हन में बहुत कुछ चल रहा था जिसे बताना मुश्किल है। मैंने अपनी पगड़ी उतार कर गियानी जो की दे दी जो उन्होंने एक बैग में रख ली। बारबर ने मुझे पुछा ,” how would you like sir ?” मुझे तो बालों के बारे में कुछ भी पता नहीं था ,इस लिए कह दिया ,”just like yours “.

इस के बाद उस ने अपना काम शुरू कर दिया। पहले कैंची से बाल काटने शुरू कर दिए। जैसे जैसे कैंची चलती थी मेरे दिल पर जैसे छुरी चल रही थी। मेरे बाल बहुत लम्बे होते थे। मैं हमेशा अपने बालों में एक लकड़ी का कंगा रखता था जो सभी सिख रखते हैं। बारबर ने मुझ से पुछा कि क्या वोह मेरा कंगा रख सकता है ? मैंने उसे कहा कि वोह रख ले क्योंकि अब तो यह मेरे किसी काम का नहीं था लेकिन यह मुझे पता नहीं था कि गोरे इतहास के लिए ऐसी चीज़ें रख लेते हैं। इन लोगों को ऐसी चीज़ें कुलैक्ट करने का बहुत शौक है क्योंकि यही चीज़ें बहुत सालों बाद ऐन्टीक हो जाती हैं और उन की कीमत बड़ जाती है । धीरे धीरे उस ने बाल काट दिए और फिर शैंपू से धोने लगा। उन को तौलिये से ड्राई किया और हेअर ड्रायर से सुखाने और स्टाइल देने लगा। जब सब खत्म हो गिया तो उस ने मेरी शेव की। फिर उस ने शीशे से मुझे दिखाया। मैं एक नया लड़का बन गिया था। उस ने दस शिलिंग मुझ से लिए और हम उस के सैलून से बाहर आ गए।

गियानी जी कहने लगे ,”गुरमेल तू तो बहुत स्मार्ट लगता है “. मैंने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि मुझे अपने आप में ही शर्म आ रही थी। इस के बाद गियानी जी मुझे बाथ ऐवेन्यू ले आये। बाथ ऐवेन्यू में एक बहुत बड़ी बिल्डिंग होती थी जिस में कौंसल का इन्षुरेन्स ऑफिस होता था। क्योंकि मैं इंडिया से आया था ,इस लिए मुझे इंश्योरेंस नंबर लेना था। यह नंबर सारी उम्र के लिए हर किसी को लेना पड़ता है क्योंकि हर एक औरत मर्द का रिकार्ड इसी पर डिपेंड है। हम एक काउंटर पर गए। एक गोरी लड़की आई और उस ने खुद ही फ़ार्म भरना शुरू कर दिया। उस ने मेरे पासपोर्ट से सभी डीटेल्ज़ लिए, राहाएश का ऐड्रेस लिखा और मेरे साइन करवाये और लिख कर मुझे मेरा इंशोरेंस नंबर दे दिया। इस के बाद हम बाहर आ गए। इस बिल्डिंग के सामने ही एक बिल्डिंग थी जिस में नहाने के लिए बाथ बने हुए थे और स्वीमिंग पूल भी था। गियानी जी ने मुझे सब समझा दिया और कहा कि यहां हम शनिवार को आएंगे।

आज इंग्लैण्ड के हर शहर में इतने गुरदुआरे मंदिर और मस्जिद हैं कि रोज़ रोज़ नए धर्म अस्थान में भी जाएँ तो सारे धर्म अस्थान देखने के लिए बहुत दिन लग जाएंगे। गुरदुआरे इतने आलिशान हैं कि देख कर ही रूह खुश हो जाती है। साथ ही धार्मिक जोश भी इतना है कि हर गुरु घर के अपने अपने असूल हैं। धार्मिक कट्टरता भी बड़ी है और शांतमई गुरु घर भी हैं जिन का किसी सिआसी संघठन के साथ कोई लेना देना नहीं है। कई गुरु घरों में पंजाबी भी पढ़ाई जाती है और इसी तरह मंदिरों में हिंदी की क्लासें लगती हैं। गुरुओं के जनम दिन मनाये जाते हैं और सड़कों पर जलूस निकलते हैं। अँगरेज़ लोगों ने हर तरह की धार्मिक आज़ादी दे रखी है। वैसाखी मेले पार्कों में लगते हैं यहां अच्छे अच्छे कलाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं . पार्टी पॉलिटिक्स के लिए भी बहुत ऐमपी हमारे धर्म अस्थानों में आते रहते हैं। हर तरह की धार्मिक आज़ादी हम को यहाँ है लेकिन अगर मैं ५३ साल पहले की बात लिखूं तो पड़ने में बहुत अजीब लगेगी। इस बात का भी मुझे दुःख है कि आज तक किसी लेखक ने यह लिखने की हिमत नहीं की। वोह यह है कि जब मैं यहां आया था तो किसी के सर पर भी पगड़ी नहीं थी बल्कि अपने ही सिख भाई किसी पगड़ी वाले को देख कर हँसते थे।

मुझे याद है ,हमारे इलाके में एक आदमी था जो पगड़ी सर पे रखता था लेकिन दाहड़ी शेव करके रखता था। सब सिंह उस को पगड़ी वाला कह कर बुलाते थे ,इतने हम गिर गए थे। अभी भी उस वक्त के लोग हैं। वोह अब पूरे सिंह बने हुए हैं और गुरदुआरों में आगू बने हुए हैं। यही लोग पगड़ी वालों पर हंसा करते थे। मुझे याद है हमारे साथ एक सिंह काम पर आया था ,जिस ने खुली दाहड़ी रखी हुई थी और यही लोग जो अब गुरदुआरे में लीडर बने हुए हैं उस को मखौल से बाबा जी कहा करते थे लेकिन यह दाहड़ी वाला शख्स काफी पड़ा लिखा था और सिख धर्म को बहुत अच्छी तरह जानता था और आगे चल कर यह शख्स हमारी यूनियन का चेयरमैन बन गिया था। मुझे बहुत दफा हंसी आ जाती है कि कुछ लोग जो अब गुरदुआरे में आगू बने हुए हैं ,जो बियर नहीं पीते थे या कम पीते थे उन को यह लोग नीचा समझते थे कि ” भाई यह तो बियर ही नहीं पीता ,कंजूस है ,पैसे बचाता है ” आदिक।

किया कारण थे जो सभी सिंह क्लीन शेव हो जाते थे ?, इस के बहुत से कारण थे ,सब से पहले तो गोरे हमें बहुत नीचा समझते थे , ऐसा समझते थे जैसे हम जाहिल हों ,अनपढ़ हों। ब्लैक बास्टर्ड कह कर गाली निकालना तो इन गोरे लोगों के लिए आम और मामूली बात थी और हम कुछ नहीं कह सकते थे क्योंकि हमारी सुनवाई है ही नहीं थी । सभी लोग गाँवों से ही आये हुए थे और अंग्रेजी बोल ही नहीं सकते थे। अब हम स्कूलों से तो आये थे लेकिन हमारी इंग्लिश भी ऐसी थी कि कुछ कहने के लिए हम सेंटेंस सोचते रहते थे और गोरे हमें सौ बातें कह देते थे क्योंकि उन की तो अंग्रेजी मातर भाषा थी। एक और बात भी थी कि हम परदेसी तो काम के लिए आये थे और किसी झगडे में पड़ कर पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहते थे क्योंकि इस का भी एक खतरा जौब खो जाने का होता था।

दूसरे मौसम भी हमारे अनकूल नहीं था। इंडिया में तो हम नहा कर अपने बालों को खुला छोड़ कर धूप में सुखा लिया करते थे। दाहड़ी को अच्छी तरह फिक्सो लगा कर एक कपडे के साथ बाँध लिया करते थे , इस कपडे को ठाठी बोलते थे। तीसरे नहाने में बहुत दिकत थी जो हफ्ते में एक दफा ही नहाया जा सकता था। चौथे काम इतने भारी और मट्टी वाले और गंदे होते थे कि बालो और दाहड़ी को अच्छी तरह सम्भालना मुश्किल हो जाता था और कई काम तो इतने गर्म होते थे कि उबलते हुए स्टील की बोगिओं के सामने खड़े होना पड़ता था।

यह वोह समय था जब इंग्लैण्ड दुसरी जंग से निजात पा कर उठा था। जगह जगह फैक्ट्रियां फाऊन्ड्रीआं लगी हुई थीं और काम जोरों शोरों से हो रहा था ,एक्सपोर्ट बहुत हो रही थी। मुझे याद है ,छोटी छोटी चीज़ें इंडिया पाकिस्तान बर्मा आदिक देशों को एक्सपोर्ट हो रही थीं। घर से निकल कर कुछ दूर जा कर ही फैक्ट्रियों की चिमणिओं से निकलता धुआं दिखाई देने लगता था। धुआं तो इतना था कि अपने अपने गार्डनों में रस्सिओं पर सूखने को पाये हुए कपडे भी काले हो जाते थे ,इस लिए जल्दी ही रस्सी से उतार लेते थे। गियानी जी गुड यीअर फैक्ट्री में काम करते थे और वहां रबड़ का ही सारा काम होता था ,जब वोह घर आते तो उन के सारे शरीर से रबड़ की मुश्क आया करती थी।

फिर एक दिन गियानी जी मुझे टाऊन में ले गए। वहां वुल्वरहैम्पटन का अनएम्प्लॉएमेंट ऑफिस था जो एक बिल्डिंग में था जो चब्ज़ फैक्ट्री के नज़दीक था। अब तो यहां बहुत कुछ बन गिया है। इस ऑफिस में मैंने जॉब कार्ड तो बनाना ही था ,साथ में अनएम्प्लॉएमेंट बेनिफिट के लिये भी रेजिस्टर होना था। एक अँगरेज़ ऑफिसर के सामने मैं बैठ गिया ,उस ने मेरे सारे डीटेल लिए ,जैसे मैं कब इंग्लैण्ड में आया ,मैरीड हूँ या सिंगल, मेरा एड्रेस और कितने पैसे मैं किराए के देता था। उस ने मुझे बता दिया कि मुझे चार पाउंड हफ्ते के बेनिफिट मिलेगा जो मेरे घर हर हफ्ते पोस्टल आर्डर आ जाया करेगा ,दो पाउंड कमरे के किराए के लिए और दो पाउंड हफ्ते के खाना खाने के लिए।

वहां से हम टाऊन सेंटर में आ गए। दुकाने देख कर मैं बहुत हैरान हुआ ख़ास कर मार्क्स स्पैंसर और वूलवर्थ को देख कर। दुकानों में इतनी सफाई कि मैं मन ही मन में इंडिया की दुकानों से कम्पेयर करने लगा। कुईंज़सकेअर में गए तो इतनी शानदार दुकानें देख कर दंग रह गिया। वहां लौएड्ज़ बैंक के सामने एक लड़के को देखा तो दिल खिल गिया क्योंकि वोह हमारे ही कालज का विद्यार्थी होता था जो हम से एक क्लास आगे होता था। इस का नाम था मोहन सिंह और यह कालज में पहलवान भी था और तूंबी से लोक गीत भी गाया करता था। मुझे देख कर वोह मेरी तरफ आया और मुझ से हाथ मिलाया ,बहुत सी बातें हुईं और हम वापस घर की ओर चल पड़े क्योंकि गियानी जी ने शाम को काम पर भी जाना था।

 

घर आ कर हम सिटिंग रूम में बैठ गए और गियानी जी डेली टेलीग्राफ पड़ने लगे और ख़बरें पड़ते पड़ते मेरे साथ बातें भी करते जाते। अखबारें रसाले अच्छी अच्छी किताबें पड़ने की आदत मुझे गियानी जी से ही मिली। पहले तो मैं नावल ही पड़ा करता था लेकिन जनरल नॉलेज की किताबें पहले पहल गियानी जी से ही मिली। पहली किताब थी ईस्टर्न रिलीजन ऐंड वैस्टर्न थॉट्स। सच कहूँ कि इस की मुझे कोई समझ नहीं आई, यह किताब शायद राधा क्रिष्नन की लिखी हुई थी। दुसरी थी ,रामा कृष्ना। गियानी जी मुझे बीच बीच में से पड़ कर बताते लेकिन मुझे इतना समझ नहीं आता था ,या मेरी उम्र ही ऐसी थी कि यह बातें मेरे लिए फीकी थीं।

कुछ भी हो जब कुछ वर्षों बाद मैं काम में वयसत हो गिया तो कभी कभी लाइब्रेरी में जाने लगा जो नज़दीक ही थी। यह भी बता दूँ कि गियानी जी की एजुकेशन सिर्फ मैट्रिक पास थी लेकिन वोह बी ए से ज़्यादा नॉलेज रखते थे। गुरबाणी की बात लिखूं तो वोह गुरु ग्रन्थ साहब को इतना जानते थे कि वोह हमें बताते रहते थे कि किस गुरु सहबान ने किस समय वोह श्लोक लिखे और क्यों लिखे, जैसे जब बाबर ने हिन्दुस्तान पे हमला किया था तो गुरु नानक देव जी ने लिखा था ,”एती मार पई कुर्लाणै तै की दर्द न आया “, यानी बाबर ने इतना ज़ुल्म किया था कि नानक जी ने भगवान को मुखातव करके कहा था कि हम हिन्दुस्तानी बाबर के हमले से इतने दुखी है और तुझे दर्द नहीं आया ?.

गियानी जी अपना खाना बनाने लगे क्योंकि उन का काम पे जाने का वक्त नज़दीक आ रहा था और मैं भी अपने और डैडी के लिए रोटी के लिए आटा गूंधने लगा। गियानी जी ने पाठ करना भी शुरू कर दिया था। कुछ देर बाद ही डैडी जी भी आ गए और जसवंत भी आ गिया। घर में रौनक सी हो गई और मैं इंग्लैण्ड की ज़िंदगी में धीरे धीरे जज़ब होने लगा। डैडी जी ने आते ही कटी हुई गोभी आलू और प्याज़ एक पतीले में डाल दिए और साथ ही आधी टिकिया बटर की डाल दी और साथ ही डाल दिया नमक हल्दी और मसाला बगैरा। डैडी ने गैस कुकर पर तवा रख दिया और रोटीआं पकाने लगे। मैं और जसवंत हंसने लगे और साथ ही डैडी भी। पंद्रां बीस मिनट में रोटी और सब्ज़ी तैयार थी। डैडी जी प्लेटों में रोटी और सब्ज़ी डाल कर सिटिंग रूम में लगे टेबल पर ले आये और हम खाने लगे।

मुझे बहुत हैरानी हुई कि मेरे सोचने के मुताबक कि सब्ज़ी स्वादिष्ट नहीं बनी होगी ,बहुत स्वाद थी। मैं तो हैरान था कि कोई तड़का नहीं भूना ,फिर भी स्वाद कैसे हो सकती है ? गियानी जी और जसवंत भी खाना खाने लगे थे। हम ने खाना खा लिया था और डैडी जी प्लेटें उठा कर किचन में धोने लगे। एक घंटे से भी पहले इस सभ काम से फार्ग हो कर डैडी जी शाम का अखबार एक्सप्रेस ऐंड स्टार पड़ने लगे। मैंने पूछ ही लिया डैडी जी ! आप तो खाना बहुत जल्दी बना लेते हो। डैडी बोले, गुरमेल ! ” यहां की ज़िंदगी बहुत बिज़ी है , मेरे काम के नज़दीक ही सब्ज़ी की दूकान है और ब्रेक टाइम के वक्त सब्जी खरीद कर वहीँ काट लेता हूँ ,घर आते ही सारी सब्ज़ी पतीले में डाल देता हूँ और साथ ही मसाले घी बगैरा भी , उधर तवा गैस कूकर पर रखा और साथ ही दो रोटी के लिए आटा गूँधना शुरू किया। तवा गर्म हुआ तो वेलन से रोटी बेल कर तवे पे डाल दी। जब तक रोटी बन जाती है सब्ज़ी भी तैयार हो जाती है ,बस एक घंटे में फ्री हो जाता हूँ “.

अब गियानी जी जसवंत और मैं सभी हंसने लगे। गियानी जी बोले , ” बई साधू सिंह जी तो बहुत फुर्तीले हैं “. डैडी जी भी हंस कर बोले ,” यहां कौन सी महलाएं हैं जो हमें बने बनाये खाने खिलाये ,यहां तो बस खुद ही नौकर और खुद ही मालक ,पता होता कि इंग्लैण्ड में इतना काम करना पड़ता है तो कभी आता ही नहीं “. मैं बोला ,” डैडी जी अब तो मैं भी आ गिया हूँ ,अब तो मैं भी आप का हाथ बंटा सकता हूँ “. डैडी बोले ,” जब काम पे लगेगा तो फिर देखूंगा कि तू किया करता है “.

बहुत देर बातें करने के बाद गियानी जी तैयार हो कर अपने काम पर चल दिए। अब जमेकन औरत जीन भी अपना खाना बनाने के लिए किचन में घुस गई। वोह लोग लेट खाना बनाते थे क्योंकि उनके खाने को कई घंटे लग जाते थे। हम भी ऊपर अपने कमरे में आ गए और टीवी देखने लगे। जसवंत भी हमारे कमरे में आ गिया था। उस समय टीवी पे दो ही चैनल हुआ करते थे बीबीसी और आईटीवी ,वोह भी ब्लैक ऐंड वाइट। नौ वजे की ख़बरें देख कर जसवंत अपने कमरे में सोने चले गिया और हम भी बातें करने लगे और मैंने सब कुछ बताया कि सारा काम हो गिया था और अब काम के लिए कोशिश करनी रह गई थी ,जो मुश्किल काम था। कुछ देर बाद बातें करते करते हम सो गए।

चलता . . … ……

 

6 thoughts on “मेरी कहानी – 70

  • विजय कुमार सिंघल

    आपका प्रत्येक संस्मरण जानकारी पूर्ण और रोचक होता है।

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    आपका संस्मरण जानकारी में बढ़ोतरी कर रहा है
    उत्सुकता है आगे क्या लिखेंगे

  • Man Mohan Kumar Arya

    आज के लेख की सभी बातें ध्यान से पढ़ी। इंग्लॅण्ड की कुछ कुछ जीवन शैली पता चल रही है. इंग्लॅण्ड में हमारे देशवासियों ने कितनी मुसीबतें झेली हैं, यह कुछ कुछ अनुभव हो रहा है। आज की क़िस्त के लिए धन्यवाद।

    • मनमोहन भाई ,धन्यवाद .परदेस में अपना घर बनाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन जब घर बन जाता है तो आगे की नस्लें भूल जाती हैं कि उन के बजुर्गों ने किया किया मुसीबतें झेली थीं .

      • Man Mohan Kumar Arya

        आपकी बात पूरी तरह से सत्य है। पुरानी बातो को भूलना मनुष्य की प्रकृति है। लेकिन कभी कभी मनुष्य का ध्यान उसकी तरफ चला जाता है तो उन्हें सोच कर और याद कर अच्छा लगता है। आज हम भी बचपन के अपने बुरे व कठिनाइयों के दिनों को भूल चुकें हैं परन्तु जब याद आती है तो उसकी स्मृतियाँ मन को सुख व दुःख वा खट्टी वा मिट्ठी बातों से लुभाती है। माता पिता ने हमारी परवरिश में न जाने कितनी मुसीबतें झेली थी। जब हमारा कुछ करने का समय आया तो वह हमसे दूर चले गए। उनका ऋण हम कभी उतार नहीं सकते। हार्दिक धन्यवाद।

        • आप की बातें सत्य हैं ,मनमोहन जी .

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