Author: मनोज शाह 'मानस'

कविता

यूं ही अलविदा हो गए

कितने युद्ध मंथनकितने क्रूर लांछनकितने क्षणिककितने लाक्षणिकहै तुम्हारा ठहराव! आना जाना तो हैजगत का रीतदंगल, हल्ला बोल,बवाल चुनाव मेंगया साल

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