कविता

अपूर्ण यावत्…

झुण्ड झुण्ड में बंटा हुआ है
टुकड़ा टुकड़ा में बंटा हुआ है
जहां में जहां तक की बातें
अर्थात…,
संसार की यावत् की बातें…!

बूंद बूंद पानी
खण्ड खण्ड नदी
अलग अलग रास्ते
और फिर…,
अलग-अलग यात्राएं कर
आपस में मिलकर
फैला हुआ है विशाल समंदर…!

सुंदर बात…,
अपूर्ण है तभी तो सुंदर है
सुंदर है तभी तो अपूर्ण है !

मैं तो…,
ईश्वर समेत में विविधता
ढूंढने वाला इंसान…!
और तुम समझते हो
कि मैं पूर्ण बन जाऊं…?

— मनोज शाह मानस

मनोज शाह 'मानस'

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