लघुकथा : जीना यहाँ-मरना यहाँ
जमुनिया भोर के अंधेरे में ही महुआ बीनने निकल पड़ी थी, जबकि सारी रात उसे तेज बुखार रहा था |
Read Moreजमुनिया भोर के अंधेरे में ही महुआ बीनने निकल पड़ी थी, जबकि सारी रात उसे तेज बुखार रहा था |
Read Moreरामचरन बरमादे के कोने में पड़ी टूटी-फूटी चारपाई पर पड़े-पड़े खांस रहे थे | सामने से पुराने टाट की तिरपाल
Read Moreसच पूछो तो भगत सिंह तेरे अरमानों का खून हुआ है तेरे बलिदान को अनदेखा किया है तेरे खून के
Read Moreघाटी नर्क बनाकर दिल्ली बैठी पहन चूडियाँ किन्नर रोना रोती है | सिंहों के जिस्म कुत्ते नोच-नोच खाते शौर्य-वीरता के
Read Moreफूलों सी, कलियों सी कोमल बेटियाँ, माँ का प्यार, पिता की इज्ज़त बेटियाँ कुल की शान, अभिमान की पगड़ी बेटियाँ,
Read Moreरजुआ बीच जंगल में अपनी भेड़-बकरियों को टिटकारी देता हुआ चरा रहा था, कि तभी उसकी नजर सज्जन सिंह पर
Read Moreखोल लिया इसने अक्ल का ताला || छत की मुंडेर पर काँव-काँव बोले |चुन्नू-मुन्नू के मन में मिश्री घोले ||
Read Moreमैं मस्त फकीर मेरा कोई नहीं ठिकाना मुझे नहीं पता कल कहाँ जाना ? अपनों ने मुझे भुलाया मैंने भी
Read Moreजगाओ हृदय में मानवता के भाव जीवन में फैल जायेगा मनोहर स्वर्णिम उजाला छलकेगा आनंद का अमृत प्याला| मिटाकर स्वार्थ
Read Moreजागो-जागो वीर जवान तुम्हीं हो देश की शान शत्रु पर करो तेज प्रहार निश्चित शत्रु की हो हार समझौते की
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