लेखनी
प्रेम तो कर लिया तुमसे मैंने प्रियतम किन्तु कर न पाई कभी इज़हार तुमसे अपनी उल्फ़त का मैं हूँ कितनी
Read Moreमाता पिता और गुरु पूजनीय हैं देवी देवता तक ने शीश नवाए जो न करे इनका मान व सम्मान उसका
Read Moreबागों में पीहू पीहू पपीहा बोले कोयल कूके कुहू कुहू करके भँवरे मंडरा रहे हैं फूलों पर मयूर भी नाचें
Read Moreकितना चाहा वो सपनों में आएँरह गई ख्वाब मैं तो बुन बुन करसेज ए उल्फ़त सजाने की ख़ातिरढेरों गुल ले
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