कविता

लेखनी

प्रेम तो कर लिया
तुमसे मैंने प्रियतम
किन्तु कर न पाई कभी
इज़हार तुमसे
अपनी उल्फ़त का
मैं हूँ कितनी हस्सास
इल्म तक न हुआ तुम्हें
चूँकि न की कभी ज़िद
न कोई फ़रमाइश ही
तुमसे मैंने
फ़क़त शब ओ सहर
जलती रही
मानिंद ए शमा अकेली
सोच लिया मैंने
भले ही कलम मेरी
पिघल जाए
मोम के जैसी
ज़र्द पड़ जाएं
नख भी मेरे
पर फ़ना कर ख़ुद को भी
अमर बनाऊंगी
प्रेम अपना
जलते अहसास को
बनाकर स्याही अपनी
लिखूँगी अल्फ़ाज़
— नीलोफ़र

नीलोफ़र नीलू

वरिष्ठ कवयित्री जनफद-देहरादून,उत्तराखण्ड