कविता

अद्भुत प्रेम

प्रेम का मधुर अहसास
मेरे जिस्म के
रोम छिद्र तक महसूस
हो रही थी जब उसकी
गुदगुदाती अंगुलियों के
स्पर्श से मेरे नख-शिख तक
झंकृत करने वाली
खुशियों की तार
मेरे विकृत मन की
आवाज को नया सुर
दे रहा था मेरी
अभिलाषाओं को
हंसी साज दे गयी वो सहज
शक्ति ही नहीं मेरे लिए एक
आत्मिक शांति था
जो सदियों से
कहीं विलुप्त हो गई थी
जो कभी तृप्त न हो पाई थी
मेरे भूख को उसके हाथो का
इक निवाला उम्र के लिए
भरपाई कर गया इक सुकून का
चुम्बक मेरे माथे पर चिपका गया
तुम नहीं समझोगे
मेरी अँखियन से बहती
दो बुंद अश्रु को
इस अद्भुत प्रेम की जो साक्षी हैं।
— लता नायर

लता नायर

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका सरगुजा-छ०ग०