कविता

गौरैया

चहुँ  ओर हैं  अँखियाँ  खोज रही,
तुम नन्हीं  चिड़िया कहाँ  खो गई।
तेरी सुध क्या आई फ़िर  से आज,
बचपन की  वो चीं चीं  याद आई।
जब भी दाना  चुगने तू  आती थी,
संग सखियों को भी तो लाती थी।
घर आँगन  तुझ  बिन लगते  सूने,
तब  फुदक  फुदक  तू  गाती  थी।
पौधों से कीट  मकोड़े  खाती  थी,
वृक्षों की डाल  पे  चहचहाती थी।
कर के  गुंजायमान  सब जग को,
मधुर कलरव  से मन  हर्षाती थी।
दिखने लगे  कंक्रीट के  जंगल ही,
आँगन कहाँ दिखतीं  हैं बालकनी,
दूषित हुआ  पर्यावरण  अब सारा,
परिणाम   न  भुगतो  अकेली ही।
रखेंगे  हम  तेरे  लिए  दाना  पानी,
तेरा  संरक्षण  सबकी  ज़िम्मेदारी।
तेरे विलुप्त होने  का  भय  हमको,
न बन जाना अतीत  की  कहानी।

— नीलोफ़र नीलू

नीलोफ़र नीलू

वरिष्ठ कवयित्री जनफद-देहरादून,उत्तराखण्ड