कविता

आये दिन बहार के

बागों में पीहू पीहू पपीहा बोले
कोयल कूके कुहू कुहू करके
भँवरे मंडरा रहे हैं फूलों पर
मयूर भी नाचें झूम झूम के
शजर गुलों के गा रहे नग़मे
तितलियां रौनक रंगों से भरें
हवाएं गाएं तराना ए उल्फ़त
झूले झूलने के आए ज़माने
सभी खुश सनम संग मिलके
क्या मिलेगा हमें बेक़रार करके
छोडो न तक़रार गले मिल लो
कि सजना आये दिन बहार के
— नीलोफ़र

नीलोफ़र नीलू

वरिष्ठ कवयित्री जनफद-देहरादून,उत्तराखण्ड