कविता

फक्र

करोगे तुम जो
वतन परस्ती
रूह ना ऐसी
कभी तरसती
जो होंगे कुरबा
वतन की खातिर
वतन तुम्हारा
फक्र करेगा
जो नौजवान
सीमा पर खड़े हैं
दुश्मन उनके
पीछे पड़े हैं
ना होते तुमसे
कभी मुखातिब
तुम ही पर देते
मिटा वह हस्ती
नियम के दौरों में
बनके देखो
कभी तो अपने
निशा को छोड़ो हो
जाए न्योछावर
जो जहां पर
वही है इंसान
वही है हंसती
— अनीता विश्वकर्मा

अनीता विश्वकर्मा

अध्यापिका, पीलीभीत-उत्तर प्रदेश, 7983333497