ग़ज़ल
निरंकुश जबसे नफरत हो गई हैशराफ़त तब से रुख़सत हो गई हैछुआ था हाथ उसने बस ज़रा सामुझे तब से
Read Moreनिकल आओ ओढ़ करके शाल फिर बातें करें देख लूँ मैं फूल जैसे गाल फिर बातें करें मैं सुनाऊँ हाल
Read Moreआँखों में बारूदी सपने सपनों में हिंसा बोई है। कब से झील नहीं सोई है! यहीं शिकारा अपना भी था
Read Moreदीवाली पर पिया, चौमुख दरवाज़े पर बालूँगी मैं दिया । ओ पिया । उभरेंगे आँखों में सपनों के इंद्रधनुष, होठों
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