कब से झील नहीं सोई है!
आँखों में बारूदी सपने सपनों में हिंसा बोई है। कब से झील नहीं सोई है! यहीं शिकारा अपना भी था
Read Moreआँखों में बारूदी सपने सपनों में हिंसा बोई है। कब से झील नहीं सोई है! यहीं शिकारा अपना भी था
Read Moreदीवाली पर पिया, चौमुख दरवाज़े पर बालूँगी मैं दिया । ओ पिया । उभरेंगे आँखों में सपनों के इंद्रधनुष, होठों
Read Moreहाल में कन्नड़ लेखक कलबुर्गी की हत्या, अन्य लेखकों की हत्याओं और दादरी में एक शख्स की महज एक अफवाह
Read Moreमैयां मोहिं यह सरकार न भावै। जो आनंद स्रोत की बैरी पोर्न पे बैन लगावै। मति मारी सब श्ािष्ट जनन
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