गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

देखो खाली न होने पाए जाम भरते रहो

किसी तरह से ये रंगीन शाम करते रहो

उदास लोगों को बिलकुल अकेला मत छोड़ो

जब भी मुमकिन हो उनसे राम राम करते रहो

जब तलक साया है सर पे बड़े – बुजुर्गों का

तब तलक दिल से उनका एहतराम करते रहो

उड़ न जाए कहीं मजबूर हो के गौरैया

आबो – दाने का उसके इंतजाम करते रहो

कुछ एक मुल्कों की फितरत ही हो गई है अब

तबाह कर दो चमन कत्लेआम करते रहो

— ओम निश्चल

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