“जल बिना बदरंग कितने”
रूप कितने-रंग कितने। बादलों के ढंग कितने।। कहीं चाँदी सी चमक है, कहीं पर श्यामल बने हैं। कहीं पर छितराये
Read Moreरूप कितने-रंग कितने। बादलों के ढंग कितने।। कहीं चाँदी सी चमक है, कहीं पर श्यामल बने हैं। कहीं पर छितराये
Read Moreसपनों में ही पेंग बढ़ाते, झूला झूलें सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। मँहगाई की मार
Read Moreरिम-झिम करता सावन आया। गरमी का हो गया सफाया।। उगे गगन में गहरे बादल, भरा हुआ जिनमें निर्मल जल, इन्द्रधनुष
Read Moreसावन आते ही बादल ने, नभ में ली अँगड़ाई। आसमान में श्याम घटाएँ, उमड़-घुमड़ कर आई।। भीग रहे हैं खेत-बाग-वन,
Read Moreजमाना है तिजारत का, तिज़ारत ही तिज़ारत है तिज़ारत में सियासत है, सियासत में तिज़ारत है नहीं अब वक़्त है,
Read Moreवाणी से खिलता है उपवन स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन शब्दों को मन में उपजाओ फिर इनसे कुछ वाक्य बनो
Read Moreनज़ारों में भरा ग़म है, बहारों में नहीं दम है, फिजाएँ भी बहुत नम हैं, सितारों में भरा तम है
Read Moreसावन सूखा बीत न जाये। नभ की गागर रीत न जाये।। कृषक-श्रमिक भी थे चिन्ताकुल। धान बिना बारिश थे व्याकुल।।
Read Moreगीत सुनाती माटी अपने, गौरव और गुमान की। दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।। खेतों में उगता है
Read Moreकहीं कुहरा, कहीं सूरज, कहीं आकाश में बादल घने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।।
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