समय बदल गया, नारी बदली।
समय बदल गया, नारी बदली। नहीं रही, अब रस की पुतली। ऐसे-ऐसे कुकर्म कर रही, घृणा को भी, आयें मितली।
Read Moreसमय बदल गया, नारी बदली। नहीं रही, अब रस की पुतली। ऐसे-ऐसे कुकर्म कर रही, घृणा को भी, आयें मितली।
Read Moreआकर्षण का समय है बीता, विशुद्ध प्रेम की वेला है। संबंधों का जाल नहीं ये, दिल से दिल का मेला
Read Moreनहीं आए थे, अकेले जग में, नहीं, अकेले जाना है। जीवन पथ पर, मिलकर चलना, सबका साथ निभाना है।। मात-पिता
Read Moreपल पल प्रति पल देती नारी। बेटी से घर की शोभा न्यारी। मात-पिता की देखभाल कर, सब कुछ किया, बनी
Read Moreदेवी नहीं, मानवी ही समझो, देवी कहकर बहुत ठगा है। बेटी, बहिन, पत्नी, माता का, हर पल नर को प्रेम
Read Moreनहीं पूर्ण मैं, लगा हलन्त्! नहीं, जानता कहाँ बसन्त?? सर्दी पीड़ित है तन-मन। कोहरे से ढका हुआ जन-जन। भाव बर्फ
Read Moreसर्दी का हो रहा अन्त। मित्रो! आया है बसन्त!! बर्फीली सर्दी बीत गयी। वियोग की अग्नि रीत गयी। संदेह कुहासा
Read Moreजो जन्मा है, वह मरता है। समय चक्र अविरल चलता है। किसी के लिए पथ, ना रूकता। काली घटा से,
Read Moreजो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में। सम्बन्ध बने बाजार की वस्तु, होता हूँ बेजार मैं।। सबका
Read Moreधन संपदा बहुत कमाई। सोचो लाॅरी कब थी गाई? प्रेम भाव है, कहाँ खो गया? हावी, पेशेवर चतुराई। स्पर्धा के
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