गीत/नवगीत

साथ चाहा था, हर पल तुमने

हम प्यार करते हैं, कितना! कभी किसी से कह न सके।
साथ चाहा था, हर पल तुमने, किंतु साथ हम रह न सके।।

हम भी तड़पे, तुम भी तड़पी।
अलग हुए, तुम किसी ने हड़पी।
तुमने उस पर विश्वास किया,
इधर भी तड़पी, उधर भी तड़पी।
हम थे तुम्हारा विकास चाहते, प्रेम का मार्ग दिखा न सके।
साथ चाहा था, हर पल तुमने, किंतु साथ हम रह न सके।।

जिस पथ पर तुम हमें मिलीं थीं।
पड़ी हुई, अधकुचली कली थीं।
हम भी, यूँ ही, भटक रहे थे,
हम भी सँभले, तुम भी खिलीं थीं।
पथ था रोका, तुमने हमारा, किंतु हाय! हम रुक न सके।
साथ चाहा था, हर पल तुमने, किंतु साथ हम रह न सके।।

पथ कठिन, तुम चलतीं कैसे?
मेरे साथ, तुम रहतीं कैसे?
तुमको, सबको, अच्छा था दिखना,
सच के पथ पर, चलतीं कैसे?
कटु सत्य कह देते हैं हम, प्रेम गान कभी हम, गा न सके।
साथ चाहा था, हर पल तुमने, किंतु साथ हम रह न सके।।

तुमने सब कुछ सौंपा था हमको।
मैं न दे सका, कुछ भी तुमको।
चन्द क्षणों को, मिले भले ही,
विछड़न पीड़ा,  अब भी हमको।
प्रेम नहीं है, किसी से हमको, दिल से तुम्हें, मिटा न सके।
साथ चाहा था, हर पल तुमने, किंतु साथ हम रह न सके।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)