धर्म के बढते हुए व्यापार को…
धर्म के बढते हुए व्यापार में आग ये कैसी लगी बाजार में जल गये रिश्ते बचा कुछ भी नही नफ़रतों
Read Moreधर्म के बढते हुए व्यापार में आग ये कैसी लगी बाजार में जल गये रिश्ते बचा कुछ भी नही नफ़रतों
Read Moreकभी सवाल तो कभी जवाब जैसी है हमारी ज़िन्दगी खुली किताब जैसी है हुई नसीब रोटियाँ किसी को मुश्किल से
Read Moreऐ वतन ऐ वतन ऐ वतन, ऐ वतन ऐ वतन ऐ वतन। तेरी पावन जमीं को नमन, तेरी पावन जमीं
Read Moreअगर दो पंख बेटी को छुएगी आसमां इक दिन कहेगा ये जहां सारा इसी की दासतां इक दिन भरेगी कल्पना
Read Moreजानता हूँ बहारों का मौसम नही वो अभी वो नही हम अभी हम नही मुश्किलें तो बहुत है मेरी राह
Read Moreबिता रहे क्यूँ व्यर्थ ही, चिंता में दिन रात। सभी चिता पर जायगें, केवल खाली हाथ॥ भाग रहा दिन रात
Read Moreदंगल में फिर सामने, कुर्सी के बलवीर छोड रहे है देखिये, नित वाणी के तीर नित वाणी के तीर, गिराते
Read Moreआपका आशीष मुझको मिल रहा है दौर लेखन का तभी तो चल रहा है जानता हूँ आप ही का है
Read Moreटूट रहे है मानवता से, पल पल मानवता के नाते। जीवन पल पल बीत रहा है, आँसू पीते और मुस्काते॥
Read Moreकिरणों से होने लगा, सिन्दूरी आकाश। तम का निश्चित जानिये, होना सकल विनाश॥ पंछी चहचाने लगे, कलरव है चहुँ ओर।
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