चाहत
बसंती बयार मादक है मौसमअल्हड़ नदी सी मतवाली हैऋतुराज बसंत का हुआ आगमनकलियों की श्रृंगार में पागल माली हैबह कर
Read Moreउफ! ये पुस की जालिम ठंडएक माह दूर खड़ी है बसंतबाहर छाया है घना कोहराजीव
Read Moreसारा पानी चूस रहे हो क्यूँ नदी समन्दर लूट रहे होप्रकृति संग कर रहे अत्याचार बंद करो प्रकृति पे वार
Read Moreजय शिव शंकर भोले भंडारीकरते हो नन्दी के तुम सवारीभूत प्रेत बना तेरे ही साथीकहलाते हो गौरा माँ
Read Moreएक पल में तेरे गुरूर का लुट जायेगा तेरा अभिमान पाप का घड़ा भर जाने दो मिट जायेगा तेरा अरमान
Read Moreप्रजातंत्र की है अब पुकार जनतंत्र में लाना है सुधार मूर्ख से हैं हम शर्मसार हो रहा देश का
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