कविता : प्रताड़ित नारी
कहते है नर-नारी है समान पर क्यों होता नारी का ही अपमान कहने को है दोनों समान पर कहीं नहीं
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Read Moreहमें नहीं काट रहे हो तुम काट रहे हो अपने जीबन को , मुझे मारकर तुम बुला रहे हो अपने
Read Moreअजीब आरजू , जिंदगी की । कैसी फितरत है , ये ! रचना ।। सीख चुके , दर्द से उभर
Read Moreकट गए तब , हर रिश्तों से । हर दिल मे , जब फरेब देखा ।। रिश्तों के मायने ,
Read Moreखुबसूरत रचना का , गुनाह ही क्या था ? सुलझी थी , वो ! मगर किसी ने समझा न था
Read Moreउन रंगीन महफिँलो की , नुमाइश बनके रह गई औरत । मिलती आज , हर गली नुक्कड़ चौराहेँ पे तबायफ
Read Moreजिंदगी की घड़ी से वक्त का एक कोना काट दिया है मैंने ठीक वैसे जैसे तेरी यादों का एक एक
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