शब्द बनकर रह गए हैं
मिटटी के चूल्हे पर हांड़ी चढ़ाना लकड़ी की आग पर खाना पकाना धुएँ से माँ की आँखों से आँसुओं का
Read Moreमिटटी के चूल्हे पर हांड़ी चढ़ाना लकड़ी की आग पर खाना पकाना धुएँ से माँ की आँखों से आँसुओं का
Read Moreमेरे देश में भूखे रहने की तड़प इत्र की महक से ज्यादा खुशबूदार होती है भुखमरी में बासी रोटी भी
Read Moreकुछ ख्वाब उतर आते है आंखो में मगर उसके पंख नही होते किसी पर कटे परिंदे के मानिंद हमेशा कैद
Read Moreआजा न मेरे मुंडेरें पे ए ! कबूतर । भिजवाना है ‘संदेशा’ पिया तक । कहना चिढ़ा रही
Read Moreचित्र अभिव्यक्ति आयोजन सतरंज के विसात पर, मोहरे तो अनेक चलन लगी है चातुरी, निंदा नियत न नेक निंदा नियत
Read Moreकभी अजनबी… कभी पहचाने से तुम लगो ! बँध गया है इक रिश्ता, कच्चे धागे से !! मर्यादित है… ना
Read Moreबहुत भीगा सावन है रे दिल को सुखा रख आँखों को भीगा गया पल – पल जुदाई में तड़पती को
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