कविता

पिया को संदेश

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आजा न

मेरे मुंडेरें पे

ए ! कबूतर ।

भिजवाना है ‘संदेशा’

पिया तक ।

 

कहना

चिढ़ा रही है

धरती की हरियाली

क्योंकि

सूना है

अन्दर का बाग़

आज तलक उनका ।

 

पिया की तरह

तू भी छल मत

ए कबूतर ।

 

आजा

सुनाना संदेशा

वो लौट आये घर

हरा-भरा कर दें

मेरे हृदय के बाग़ को

जो कब से

लालायित है

सिंचित होने को

सावन में !!!

मुकेश कुमार सिन्हा, गया

रचनाकार- मुकेश कुमार सिन्हा पिता- स्व. रविनेश कुमार वर्मा माता- श्रीमती शशि प्रभा जन्म तिथि- 15-11-1984 शैक्षणिक योग्यता- स्नातक (जीव विज्ञान) आवास- सिन्हा शशि भवन कोयली पोखर, गया (बिहार) चालित वार्ता- 09304632536 मानव के हृदय में हमेशा कुछ अकुलाहट होती रहती है. कुछ ग्रहण करने, कुछ विसर्जित करने और कुछ में संपृक्त हो जाने की चाह हर व्यक्ति के अंत कारण में रहती है. यह मानव की नैसर्गिक प्रवृति है. कोई इससे अछूता नहीं है. फिर जो कवि हृदय है, उसकी अकुलाहट बड़ी मार्मिक होती है. भावनाएं अभिव्यक्त होने के लिए व्याकुल रहती है. व्यक्ति को चैन से रहने नहीं देती, वह बेचैन हो जाती है और यही बेचैनी उसकी कविता का उत्स है. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरा हूँ. जब वक़्त मिला, लिखा. इसके लिए अलग से कोई वक़्त नहीं निकला हूँ, काव्य सृजन इसी का हिस्सा है.