कविता : धोखा
कैसे अब किसी पर विश्वास मैं करु? पाके तुझसे धोखा अब मैं पलपल मरु मुझे बरबाद करके तू भी ना
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Read Moreबरखा की झरमर बूंदो की रूनझुन सी आहट सुन कर यूं लगा जैसे सुरीले से साज़ पर मीठी सी तान
Read Moreवो आखि़री रात और वो माँ तेरा आखि़री ख्वा़ब आज भी रह-रह कर कर झंझलाता है तेरी खामोशी, वो तेरे
Read Moreप्रदत शीर्षक- सिंह- केसरी, शेर, महावीर, हरि, मृगपति, वनराज, शार्दूल, नाहर, सारंग, मृगराज हे सारंग नाहर हरि, सिंह शेर मृगराज
Read Moreमौक्तिका (बचपन जो खो गया) 2*9 (मात्रिक बहर) (पदांत ‘गया’, समांत ‘ओ’ स्वर) जिम्मेदारी में बढ़ी उम्र की, बचपन वो
Read Moreकितनी लयबद्ध है ट्रेन की छूक छूक की आवाज ठीक वैसे जैसे कदम ताल करते स्कूली बच्चे और फिर इसका
Read Moreआज की मेरी कविता मौसम का तराना क्या कहूँ कैसा जादू है इस कदर। मौसम आज दिल को लुभाने लगा॥
Read Moreविषय- वर्षा उमड़ घुमड़ कर बादरा, बरसन को तैयार हवा बहे तो जल चले, वरना चह बेकार॥ आस लगी नभ
Read More1- आई बरखा नाचती गाती गोरी वन में मोर॥ 2- पानी पानी है चहु दिश बदरी पी चितचोर॥ 3- लजाये
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