“महंगाई”, मुक्त काव्य
लो कर लो बात कहते हैं मंहगाई है आखिर पूछो तो ये कहाँ से आई है खेतों में उगने
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Read More“सात भगण अंत में दो गुरु” राघव फिर अब बाण धरो वन में सिय लाल लखन संग आओ राक्षस घेरि
Read MoreHappy Father’s Day पिता आकाश हैं, आकाश में धूप हैं, धूप में कवच हैं. पिता मित्र हैं, मित्रों में सुदामा
Read Moreखुशनुमा जीवन का एहसास दिलाते वो पिरामिड आकार के शंकुधारी पेड़ों जैसे तुम, अधरची मेहंदी सी अनोखी सुगंध सहित लाली
Read Moreलिखना था मुझे एक काव्य नया लिख बैठी मैं महाकाव्य नया वर्णन जो किया वो अथाह हो गया रुकी न
Read Moreये दुख शाश्वत सनातन देव दानव धर्म सेअधर्म न्याय अन्याय कर्म ============= ये कैसी वेदना मीन नीर आकर्षण में करे
Read Moreविश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी कर रहे थे हड़ताल अपनी मांगों को मनवाने के लिए कर रहे थे
Read Moreबजूद खोते जा रहे हैं पोखर बुजुर्गों की दूरदर्शी सोच के परिचायक जिनका होना प्रतीक था खुशहाली और समृद्धि का
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